इस पेड़ के नीचे से गुजरने के बाद कांवड़ियें नहीं चढ़ा सकते जल, जानिए क्या है राज?
सावन के पूरे माह भगवान शिव की पूजा-अर्चना में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है। भक्त बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ कांवड़ लेकर शिवलिंग पर पवित्र जल चढ़ाते हैं। इस पावन यात्रा के दौरान कई धार्मिक नियम और मान्यताएं जुड़ी हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण नियम है कि कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को गूलर के पेड़ के नीचे से गुजरने से मना किया गया है। इसे लेकर कई धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण बताए जाते हैं, जिनका यहां विस्तार से वर्णन किया गया है।
धार्मिक मान्यताएं: क्यों मना है गूलर के पेड़ के नीचे से गुजरना?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गूलर का पेड़ एक पूजनीय वृक्ष माना जाता है जिसका संबंध शुक्र ग्रह से जोड़ा जाता है। इसके अलावा कहा जाता है कि गूलर पेड़ का संबंध यशराज कुबेर से भी है। माना जाता है कि जब कांवड़िये इस पेड़ के नीचे से गुजरते हैं तो पेड़ के पत्ते या फल उनके पैरों के नीचे आ जाते हैं, जिससे भगवान शिव अप्रसन्न हो जाते हैं और कांवड़ खंडित हो जाती है। इसीलिए कांवड़ियों को इस पेड़ के नीचे से गुजरना वर्जित बताया गया है।
एक और मान्यता यह भी है कि गूलर के फल में असंख्य जीव-जंतु होते हैं। अगर किसी कांवड़िये का पैर इन फलों पर पड़ जाता है, तो वह जीवों की हत्या के पाप से ग्रस्त हो जाता है, जिससे उसकी कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है। ऐसी स्थिति में भक्त को फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है।
नकारात्मक शक्तियों का वास
कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गूलर के पेड़ में नकारात्मक ऊर्जा या बुरी शक्तियों का वास होता है, इसलिए इसके नीचे से गुजरना अशुभ माना जाता है। इसे भी कांवड़ यात्रा के नियमों में शामिल किया गया है ताकि यात्रा सफल और पवित्र बनी रहे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो गूलर के पेड़ पर असंख्य कीट और जीव-जंतु पाए जाते हैं। इस पेड़ के नीचे से गुजरने पर कांवड़ियों को त्वचा संबंधी एलर्जी या संक्रमण हो सकता है। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से भी कांवड़ियों को गूलर के पेड़ के नीचे से गुजरने से बचने की सलाह दी जाती है।
किन पेड़ों के नीचे विश्राम कर सकते हैं कांवड़ यात्री?
कांवड़ यात्रा में विश्राम के लिए कुछ पेड़ों को विशेष रूप से शुभ और सुरक्षित माना गया है। इनमें पीपल, नीम और बरगद के पेड़ शामिल हैं। कांवड़ यात्री इन पेड़ों के नीचे आराम कर सकते हैं और इन्हें यात्रा के दौरान विश्राम के लिए निषिद्ध नहीं माना गया है।
अगर कांवड़ खंडित हो जाए तो क्या करें?
कांवड़ यात्रा के कई नियम हैं। अगर किसी भी कारण से कांवड़ खंडित हो जाए तो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कांवड़ियों को वह जल आसपास के पेड़ के नीचे विसर्जित कर देना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव से क्षमा याचना करनी चाहिए और 108 बार शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए। इसके बाद ही यात्रा की पुनः शुरुआत करनी चाहिए।

