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आखिर क्यों 5 महीने होने पर भी कहा जाता है चातुर्मास? इस पौराणिक कथा में जानिए इसके बारे में सबकुछ

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ होता है। इस बार चातुर्मास 6 जुलाई से शुरू हुआ है। मान्यता है कि भगवान विष्णु इसी तिथि से योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी....
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आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ होता है। इस बार चातुर्मास 6 जुलाई से शुरू हुआ है। मान्यता है कि भगवान विष्णु इसी तिथि से योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी को पुनः जागते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है।

इसलिए इसे चातुर्मास कहते हैं।

चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से आरंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को समाप्त होता है। चातुर्मास की गणना माह के नाम से नहीं, बल्कि तिथि के आधार पर की जाती है। यही कारण है कि चातुर्मास में केवल चार महीने ही गिने जाते हैं। कभी-कभी अधिक मास के कारण सावन दो महीने का हो जाता है। लेकिन इसके बाद भी चातुर्मास में केवल 4 महीने ही माने जाते हैं जो इस प्रकार हैं -

1. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से सावन शुक्ल एकादशी तक एक महीना

2. सावन शुक्ल एकादशी से भाद्रपद शुक्ल एकादशी तक दूसरा महीना

3. भाद्रपद शुक्ल एकादशी से आश्विन शुक्ल एकादशी तक तीसरा महीना

4. आश्विन शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चौथा महीना

इसलिए नहीं होते शुभ कार्य

चातुर्मास के दौरान किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्य करना भी वर्जित होता है। जिसके पीछे कारण यह माना जाता है कि इस दौरान भगवान विष्णु अन्य देवताओं के साथ योग निद्रा में होते हैं। जिसके कारण आपको उस कार्य में उनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है।

चातुर्मास में क्या करें

चातुर्मास में गरीबों, जरूरतमंदों और साधु-संतों के बीच अपनी क्षमता के अनुसार भोजन और वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही चातुर्मास में पीले रंग के वस्त्र दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु को प्रिय है। चातुर्मास में भगवान विष्णु की पूजा में उन्हें चने की दाल और गुड़ का भोग भी लगाना चाहिए। इसके साथ ही चातुर्मास में गायों की सेवा करने से भी जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही चातुर्मास में भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना भी लाभकारी माना जाता है। इस अवधि में आप रामायण, भगवद्गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ भी कर सकते हैं।

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