ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: रामायण तो सभी ने देखी, सुनी और पढ़ी होगी और इसके सभी पात्र से हर कोई वाकिफ होगा। रामायण हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ है जिसने मानव जीवन को सही मार्ग दिखाने का काम किया है रामायण में वैसे तो कई सारे पत्र प्रमुख है लेकिन प्रभु श्रीराम और देवी सीता के जीवन में अधिक विस्तार से इसमें बताया गया है रामायण में कई सारी घटनाओं का वर्णन किया गया है तो आज हम अपने इस लेख में माता सीता की अग्नि परीक्षा क्यों हुई इस विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब देवी सीत लगभग दस साल की रही होगी तब उनकी भेंट संन्यासिन गार्गी से हुई थी उन्हें देखकर ही सीता की माता सुनयना व्यथित हो गई तब सीता ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया वह स्वतंत्र विचारों की स्वामिनी है और किसी से भी कोई प्रश्न पूछने में रुकती नहीं है
तब सीता ने उन्हें यही बोला था कि क्या स्वतंत्रता बुरी बात होती है क्या किसी से प्रश्न पूछना अनुचित है इस पर सीता जी की माता के पास कोई उत्तर नहीं था। क्योंकि स्वतंत्रता खास कर स्त्रियों के लिए अशोभनीय है यही कारण था कि उस समाज में स्त्री को निम्न समझा जाता था वरन सीता को अपनी माता से यह प्रश्न पूछना ही नहीं पड़ता।
रामायण काल में सीता माता को रावण उठा कर ले गया तो श्रीराम ने रावण को मार कर अपनी पत्नी सीता को छुड़ाया था पर उसके बाद वह इस समाज से भी अवगत थे कि अगर सीता को ऐसे ले गए तो सीता को अत्यंत दुख देंगे लोग क्योंकि यह एक परंपरा के रूप में माना गया था स्त्री को निम्न समझनां इसी कारण से श्रीराम को उनकी अग्नि परीक्षा लेनी पड़ी थी। पर यहां पर इस बात के याद करना जरूरी है कि हनुमान ने श्रीराम से पूछा था कि ऐसी परीक्षा कि आवश्यकता क्यों है
तब श्रीराम ने उत्तर दिया था हनुमान सीता एक साल से लंका में असुर के मध्य रही है और यह बात लोग जानते है अगर अग्नि परीक्षा ना ली तो लोग सीता को बहुत दुखी करेंगे जो मुझसे सहन नहीं होगा। यह बात कहीं थी हनुमान को श्रीराम ने, श्रीराम ने तो यह सोचकर ही निर्णय लिया था। मगर ये आगे चलकर रीति व परंपरा बन गई जब हम कोई भी एक क्रिया, परंपरा या रीति को मानते हैं और उसी के रूप में कई बार कार्य करते हैं तो स्वभाविक है उसी में हम ढलते चले जाते हैं और ज्ञान भी नहीं रहता है कि कब हम उनके दास बन गए है। ठीक ऐसा ही मामला था यह सीता जी की अग्नि परीक्षा केवल इसी कारण से श्रीराम को विवश्ता में लेनी पड़ी थी।