ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में ईश्वर आराधना को सबसे श्रेष्ठ बताया गया है पूजा पाठ के कई प्रकार भी है धार्मिक तौर पर वैदिक काल से ही यज्ञों और हवन की परंपरा चली आ रही है रामायण और महाभारत काल में भी राजाओं और ऋषि-मुनियों द्वारा यज्ञ और हवन किए जाते रहे है। शास्त्रों की मानें तो किसी बुरी घटना को टालने या फिर विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए यज्ञ करवाया जाता था।
आज के समय में भी धार्मिक अनुष्ठानों में पूजा पाठ के साथ साथ यज्ञ और हवन कराया जाता है शास्त्रों और ग्रंथों में यज्ञों के कई प्रकार बताए गए है जिसमें पुत्रेष्टि यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ, राजसूय यज्ञ, विश्वजीत यज्ञ, सोमयज्ञ और पजन्य यज्ञ शामिल है इनमें से कई यज्ञ आज भी धार्मिक कार्यक्रम में किए जाते है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे है कि राजसूय क्या होता है और ये सनातन धर्म में क्यों जरूरी है तो आइए जानते है।
क्या होता है राजसूय यज्ञ—
शास्त्र अनुसार कई सारे यज्ञों में राजसूय यज्ञ भी एक माना जाता है जिसे महत्वपूर्ण बताया गया है इस यज्ञ को लेकर यह कहा जाता है कि राजसूय यज्ञ को करने से साधक की कीर्ति और राज्य की सीमाएं बढ़ती है पौराणिक काल में विशेष तौर पर इस यज्ञ को किसी राजा द्वारा किया जाता था। पुराणों में वर्णित है कि जब पांडव इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाकर वहां धर्म पूर्वक शासन करने लगे तब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था।
यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां, यज्ञ में प्रयोग होने वाले मंत्र और तत्वज्ञान का उल्लेख किया गया है राजसूय यज्ञ का भी वर्णन मिलता है राजसूय यज्ञ को वैदिक यज्ञ कहा जाता है जिसे कोई राजा चक्रवती सम्राट बनने के लिए करते थे। मान्यता है कि इस यज्ञ को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है धन प्राप्ति, कर्मों के प्रायश्चित, अनिष्ट को टालने, दुर्भाग्य को दूर करने, सौभाग्य प्राप्ति और रोगों से मुक्ति के लिए इस यज्ञ को किया जा सकता है।