ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: जिस भी मनुष्य ने इस धरती पर जन्म लिया है वह हर तरह के सुख को भोगना चाहता है और हर कार्य में सफलता हासिल करना चाहता है अपने कार्य को सफल करने के लिए वह खूब प्रयास और मेहनत भी करता है लेकिन अगर उसे मनचाही सफलता नहीं मिलती है या यूं कह सकते हैं कि वह अपनी कोशिशों में असफल हो जाता है
तो ऐसे समय पर उस व्यक्ति के शुभचिंतक यह कहकर उसकी हौसला अफजाई करते हैं कि आज तुम्हारा वक्त अच्छा नहीं है इसी समय को ज्योतिषशास्त्र में पंचक के नाम से जाना जाता है इसे पंचक का दर्जा दिया गया है माना जाता है कि इसी पंचक समय पर मनुष्य को शुभ व मांगलिक कार्यों से परहेज करना चाहिए तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा पंचक के बारे में महत्वपूर्ण बातें बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
हिंदू धर्म और ज्योतिषशास्त्र में पंचक को हिंदू पंचांग में बेहद अशुभ समय माना जाता है इस दौरान शुभ कार्य से निषेध होना चाहिए पंचक को शुभ नक्षत्र नहीं माना जाता है इसे अशुभ और हानिकारक नक्षत्रों का योग कहा जाता है ज्योतिष अनुसार नक्षत्रों के मेल से बनने वाले विशेष योग को पंचक के नाम से जाना जाता है जब चंद्रमा, कुंभ और मीन राशि पर होते हैं तब उस वक्त को पंचक काल माना जाता है बता दें कि चंद्रमा करीब ढाई दिनों तक एक ही राशि में विराजमान रहता है इस तरह इन दो राशियों में चंद्रमा पांच दिनों तक भ्रमण करता है इन पांचों दिनों दौरान चंद्रमा पांच नक्षत्रों से होकर गुजरता है ज्योतिष में इन्हीं पांच दिनों के पंचक कहा जाता है धार्मिक तौर पर किसी भी कार्य को करने से पहले मुहूर्त देखने का विधान होता है इसमें सबसे महत्वपूर्ण है पंचक जब भी कोई काम आरंभ किया जाता है तो उसमें शुभ मुहूर्त के साथ पंचक का भी विचार किया जाता है पंचक काल में किया गया कार्य शुभ फल प्रदान नहीं करता है
ज्योतिष अनुसार नक्षत्र चक्र में कुल मिलाकर 27 नक्षत्र माने जाते हैं इन सभी में आखिरी के पांच नक्षत्रों को दूषित माना जाता है ये नक्षत्र धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती होते हैं आपको बता दें कि हर ऩक्षत्र चार चरणों में विभाजित होता है पंचक धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से आरंभ होकर रेवती नक्षत्र के आखिरी चरण तक रहता है हर दिन एक नक्षत्र होता है इसी नजरिए से देखा जाए तो धनिष्ठा से लेकर रेवती तक पांच दिन हुए इन्हीं पांच दिनों को ज्योतिषीय भाषा में पंचक नाम दिया गया है।