ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में ईश्वर आराधना व उपासना के कई तरीके और नियम बताए गए है जिसमें एक तरीका कल्पवास को भी माना जाता है परमात्मा का आशीष पाने का यह बेहद प्राचीन मार्ग है जिसमें अनेक नियमों का पालन करना होता है कल्पवास एक तरह की तपस्या के समान होता है जिसमें संयम, नियम के साथ अल्पाहार, भूमि पर शयन, शुद्ध मन, वचन बेहद जरूरी माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कल्पवास करने से साधक को इच्छित फल की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही साथ उसे जन्म जन्मांतर के बंधनों से भी मुक्ति मिल जाती है, अगर आप कल्पवास के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो आज का हमारा ये लेख आपको पूरा पढ़ना होगा।
कल्पवास का अर्थ और इसका आरंभ—
आध्यात्मिक तौर पर कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना। प्रयाग, कुंभ मेले में कल्पवास करने का अधिक महत्व होता है आपको बता दें कि कल्पवास पौष मास के 11वें दिन से माघ मास के 12वें दिन तक चलता है। शास्त्रों की मानें तो कल्पवास की परंपरा बहुत प्राचीन है जब प्रयाग ऋषियों मुनियों की तपोस्थली थी और गंगा जमुना के आस पास चारों ओर केवल जंगल था उस वक्त ऋषियों ने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान बनाया गया।
इस दौरान गृहस्थों को अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा प्रदान की जाती थी। शास्त्रों में वैसे तो कल्पवास के लिए कोई आयु निधारित नहीं की गई है लेकिन सभी जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके लोग कल्पवास कर सकते है माना जाता है कि जो लोग जिम्मेदारियों से बंधे रहते है कल्पवास में भी उनका मन घर परिवार और मोह माया से जुड़ा रहता है ऐसे में वे आत्मनियंत्रण ठीक से नहीं कर पाते है।