ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों, वेदों और महापुराणों में गुढ़ रहस्य और ज्ञान छिपा हुआ है इनका एक चौथाई भाग भी मनुष्य जान ले तो उसके जीवन की सभी परेशानियां आपने आप ही दूर हो जाएगी और जीवन में वह परमात्मा को प्राप्त कर लेगा। धार्मिक तौर पर अगर देखा जाए तो वेदों, पुराणों और धर्म ग्रंथों में कुल 84 लाख योनियों का वर्णन मिलता है इन 84 लाख योनियों का मतलब है कि इस पूरी पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव जंतु।

इन्हें दो भागों में बांटा गया है जिनमें पहला योनिज है और दूसरा आयोजित माने जाते हैं वही इसके अलावा स्थूल रूप में भी प्राणियों को तीन भागों में विभाजित किया गया है जिनमें जलचर, थलचर और नभचर शामिल है 84 लाख योनियों का सत्य पद्म पुराण के एक श्लोक के द्वारा बताया गया है तो आज हम इसी पर चर्चा कर रहे हैं कि इन 84 योनियों का सच आखिरी है क्या, तो आइए जानते हैं।

पद्म पुराण का श्लोक—
जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।।
हिंदू धर्म पुराणों में कुल मिलाकर 84 लाख योनियों में मनुष्य की योनि को सबसे उत्तम और श्रेष्ठ बताया गया है माना जाता है कि एक आत्मा का कर्मगति के अनुसार 30 लाख बार वृक्ष योनि में जन्म होता है इसके बाद 9 लाख बार जलचर प्राणियों के रूप में जन्म होता है तो वही 10 लाख बार कृमि योनि में और 11 लाख बार पक्षी की योनि में होता है वही 20 लाख बार पशु की योनि में जन्म लेने के आद अंत में कर्मानुसार गौर का शरीर मिलता है और इसके बाद आत्मा को मनुष्य योनि प्राप्त होती है।

वही इसके बाद 4 लाख बार आत्मा का जन्म मानव योनि में ही होता है और अंत में उसे पितृ या फिर देव योनि की प्रापित होती है आपको बता दें कि ये सभी कर्म के अनुसार भी आत्मा को मिलते हैं कहा जाता है कि जब आत्मा मनुष्य योनि में आकर नीच कर्म करती है तो उसे फिर से इन्हीं नीच योनियों में जन्म लेना पड़ता है इसी को शास्त्रो, वेदों और पुराणों में दुर्गति कहा गया है इसलिए मनुष्य को मानव जीवन में रहते हुए अच्छे कर्म करने चाहिए और शास्त्रों में बताए गए नियमों का पालन करना चाहिए तभी उसकी आत्मा को दोबार मानव योनि में जन्म लेने का अवसर प्राप्त होगा।


