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शुक्रवार को करें श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी हर मुराद

read ashtalakshmi stothram path on friday

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में शुक्रवार का दिन धन वैभव और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी को समर्पित है इस दिन देवी मां की पूजा अर्चना करना श्रेष्ठ माना जाता है आज के दिन भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए विधि विधान से पूजा आराधना करते हैं और उपवास भी रखते हैं

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ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त आज के दिन पूरे मन से श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है देवी मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए है श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का संपूर्ण पाठ, तो आइए जानते हैं। 

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श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र-
1ण् आद्य लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधविए
चन्द्र सहोदरि हेममयेए
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनिए
मंजुल भाषिणी वेदनुते ।
पंकजवासिनी देव सुपूजितए
सद्गुण वर्षिणी शान्तियुतेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
आद्य लक्ष्मी परिपालय माम् ॥1॥

2ण् धान्यलक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनीए
वैदिक रूपिणि वेदमयेए
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणिए
मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते ।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनिए
देवगणाश्रित पादयुतेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्॥2॥

3ण् धैर्यलक्ष्मी
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गविए
मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमयेए
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रदए
ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणी पापविमोचिनीए
साधु जनाश्रित पादयुतेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥3॥

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4ण् गजलक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनिए
सर्वफलप्रद शास्त्रमयेए
रथगज तुरगपदाति समावृतए
परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवितए
ताप निवारिणी पादयुतेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम् ॥4॥

5ण् संतानलक्ष्मी
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणिए
राग विवर्धिनि ज्ञानमयेए
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणिए
सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वरए
मानव वन्दित पादयुतेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ॥5॥

6ण् विजयलक्ष्मी
जय कमलासिनि सद्गति दायिनिए
ज्ञान विकासिनी ज्ञानमयेए
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसरए
भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दितए
शंकरदेशिक मान्यपदेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ॥6॥

7ण् विद्यालक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गविए
शोकविनाशिनि रत्नमयेए
मणिमय भूषित कर्णविभूषणए
शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणिए
कामित फलप्रद हस्तयुतेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥7॥

8ण् धनलक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमिए
दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमयेए
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंमए
शंख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पुराणेतिहास सुपूजितए
वैदिक मार्ग प्रदर्शयुतेए
जय जय हे मधुसूदन कामिनीए
धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम् ॥8॥

फ़लशृति
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णु वक्षरूस्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयरू ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्॥
॥ इति श्रीअष्टलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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