ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा आराधना को समर्पित होता है इस दिन भगवान की विधिवत पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त आज के दिन सच्चे मन से भगवान की आराधना करता है उस पर विष्णु जी की विशेष कृपा होती है

इस दिन भक्त पूजा पाठ के साथ साथ उपवास भी रखते हैं ऐसा कहा जाता है आज के दिन अगर पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ कमल नेत्र स्तोत्र का पाठ किया जाए तो श्री हरि की विशेष कृपा और आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होता है जिससे जीवन के सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए है कमल नेत्र स्तोत्र का संपूर्ण पाठ।

कमल नेत्र स्तोत्र-
श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बरए
अधर मुरली गिरधरम ।
मुकुट कुण्डल कर लकुटियाए
सांवरे राधेवरम ॥1॥
कूल यमुना धेनु आगेए
सकल गोपयन के मन हरम ।
पीत वस्त्र गरुड़ वाहनए
चरण सुख नित सागरम ॥2॥
करत केल कलोल निश दिनए
कुंज भवन उजागरम ।
अजर अमर अडोल निश्चलए
पुरुषोत्तम अपरा परम ॥3॥
दीनानाथ दयाल गिरिधरए
कंस हिरणाकुश हरणम ।
गल फूल भाल विशाल लोचनए
अधिक सुन्दर केशवम ॥4॥
बंशीधर वासुदेव छइयाए
बलि छल्यो श्री वामनम ।
जब डूबते गज राख लीनोंए
लंक छेद्यो रावनम ॥5॥
सप्त दीप नवखण्ड चौदहए
भवन कीनों एक पदम ।
द्रोपदी की लाज राखीए
कहां लौ उपमा करम ॥6॥
दीनानाथ दयाल पूरणए
करुणा मय करुणा करम ।
कवित्तदास विलास निशदिनए
नाम जप नित नागरम ॥7॥
प्रथम गुरु के चरण बन्दोंए
यस्य ज्ञान प्रकाशितम ।
आदि विष्णु जुगादि ब्रह्माए
सेविते शिव संकरम ॥8॥

श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशवए
कृष्ण यदुपति केशवम ।
श्रीराम रघुवरए राम रघुवरए
राम रघुवर राघवम ॥9॥
श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधवए
वासुदेव श्री वामनम ।
मच्छ.कच्छ वाराह नरसिंहए
पाहि रघुपति पावनम ॥10॥
मथुरा में केशवराय विराजेए
गोकुल बाल मुकुन्द जी ।
श्री वृन्दावन में मदन मोहनए
गोपीनाथ गोविन्द जी ॥11॥
धन्य मथुरा धन्य गोकुलए
जहाँ श्री पति अवतरे ।
धन्य यमुना नीर निर्मलए
ग्वाल बाल सखावरे ॥12॥
नवनीत नागर करत निरन्तरए
शिव विरंचि मन मोहितम ।
कालिन्दी तट करत क्रीड़ाए
बाल अदभुत सुन्दरम ॥13॥
ग्वाल बाल सब सखा विराजेए
संग राधे भामिनी ।
बंशी वट तट निकट यमुनाए
मुरली की टेर सुहावनी ॥14॥
भज राघवेश रघुवंश उत्तमए
परम राजकुमार जी ।
सीता के पति भक्तन के गतिए
जगत प्राण आधार जी ॥15॥
जनक राजा पनक राखीए
धनुष बाण चढ़ावहीं ।
सती सीता नाम जाकेए
श्री रामचन्द्र प्रणामहीं ॥16॥
जन्म मथुरा खेल गोकुलए
नन्द के ह्रदि नन्दनम ।
बाल लीला पतित पावनए
देवकी वसुदेवकम ॥17॥
श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाकेए
जो भजे हरिचरण को ।
भक्ति अपनी देव माधवए
भवसागर के तरण को ॥18॥
जगन्नाथ जगदीश स्वामीए
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम ।
द्वारिका के नाथ श्री पतिए
केशवं प्रणमाम्यहम ॥19॥
श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़तनिशदिनए
विष्णु लोक सगच्छतम ।
श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामीए
कविदत्त दास समाप्ततम ॥20॥


