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प्रतिदिन करें गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ, मिलेगी मानसिक शांति

ganesh atharvashirsha Wednesday path benefit and significance 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में पूजा पाठ के साथ देवी देवता के मंत्र और स्तोत्र का पाठ व जाप करने से भी भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है वही बुधवार का दिन भगवान श्री गणेश की आराधना व साधना को समर्पित है ऐसे में बुधवार के दिन श्री गणेश पूजा अर्चना के बाद आप उनके अथर्वशीर्ष का पाठ कर सकते हैं इसके पाठ से आपकी सभी परेशानियां दूर हो जाएगी तो आज हम आपके लिए लेकर आए है श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ, जानिए गणपति अथर्वशीर्ष पाठ करने के नियम। 

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गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के नियम- 
आपको बता दें कि गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लिए प्रतिदिन या फिर अगर वक्त की कमी है तो आप बुधवार स्नान आदि करने के बाद पूजा घर में कुशा के आसन पर बैठकर शांत मन से पाठ करें भगवान श्री गणेश के विशेष दिन जैसे संकष्टी चतुर्थी के दिन शाम के वक्त 21 बार ये पाठ करने से इसका फल आपको दोगुना प्राप्त होगा। आपको बता दें कि पाठ का उच्चारण सही तरीके से करें तभी इसका पूर्ण लाभ मिलेगा। अशुद्ध मन या विचार इस दौरान नहीं लगाने चाहिए पूरा ध्यान भगवान की पूजा में हो तभी आपको पूर्ण फल प्राप्त होगा। 

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।। अथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति ।।

ॐ नमस्ते गणपतये।

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।

त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।

त्वमेव केवलं धर्तासि।।

त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।

त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।

त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।

ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।

अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।

अव श्रोतारं। अवदातारं।।

अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।

अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।

अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।

अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।

सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।

त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।

त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममयरू।।

त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।

त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।

त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।

सर्व जगदि‍दं त्वत्तो जायते।

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सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।

सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।

सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।

त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभरू।।

त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।

त्वं गुणयत्रयातीतरू त्वमवस्थात्रयातीतरू।

त्वं देहत्रयातीतरू त्वं कालत्रयातीतरू।

त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।

त्वं शक्ति त्रयात्मकरू।।

त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।

त्वं शक्तित्रयात्मकरू।।

त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।

त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।

वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवरू स्वरोम्।।

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।

अनुस्वाररू परतररू।। अर्धेन्दुलसितं।।

तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।

गकाररू पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।

अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।

नादरू संधानं।। संहिता संधिरू सैषा गणेश विद्या।।

गणक ऋषिरू निचृद्रायत्रीछंदरू।। ग‍णपति देवता।।

ॐ गं गणपतये नमरू।।

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