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शुक्रवार पूजा में करें ये एक काम, लक्ष्मी कृपा से चल पड़ेगा कारोबार

recite maa Lakshmi chalisa path on Friday Lakshmi puja 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म और शास्त्रों की मानें तो सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित है वही शुक्रवार का दिन देवी मां लक्ष्मी को समर्पित किया गया है माता लक्ष्मी को धन वैभव और सुख समृद्धि की देवी कहा जाता है आज के दिन इनकी विधिवत पूजा करना उत्तम माना जाता है इस दिन पूजा पाठ के साथ भक्त उपवास भी रखते हैं कहा जाता है कि माता लक्ष्मी जिस पर प्रसन्न हो जाती है उसके जीवन में धन दौलत की कोई कमी नहीं रहती है

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ऐसे में अगर आप भी देवी मां को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शुक्रवार के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद घर के मंदिर में लक्ष्मी जी की विधिवत पूजा करें फिर आसन बिछाकर श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें ऐसा करने से माता लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न होती है और उनकी कृपा से ठप पड़ा कारोबार भी चलने लगता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए है श्री लक्ष्मी चालीसा पाठ। 

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श्री लक्ष्मी चालीसा-

॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपाए
करो हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्घ करिए
परुवहु मेरी आस ॥

॥ सोरठा॥
यही मोर अरदासए
हाथ जोड़ विनती करुं ।
सब विधि करौ सुवासए
जय जननि जगदंबिका ॥

॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही ।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी ।
सब विधि पुरवहु आस हमारी ॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा ।
सबकी तुम ही हो अवलम्बा ॥ 1 ॥

तुम ही हो सब घट घट वासी ।
विनती यही हमारी खासी ॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी ।
दीनन की तुम हो हितकारी ॥ 2 ॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी ।
कृपा करौ जग जननि भवानी ॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी ।
सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥ 3 ॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी ।
जगजननी विनती सुन मोरी ॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता ।
संकट हरो हमारी माता ॥ 4 ॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो ।
चौदह रत्न सिन्धु में पायो ॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी ।
सेवा कियो प्रभु बनि दासी ॥ 5 ॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा ।
रुप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा ।
लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥ 6 ॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं ।
सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी ।
विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥ 7 ॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी ।
कहं लौ महिमा कहौं बखानी ॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई ।
मन इच्छित वांछित फल पाई ॥ 8 ॥

तजि छल कपट और चतुराई ।
पूजहिं विविध भांति मनलाई ॥
और हाल मैं कहौं बुझाई ।
जो यह पाठ करै मन लाई ॥ 9 ॥

ताको कोई कष्ट नोई ।
मन इच्छित पावै फल सोई ॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि ।
त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी ॥ 10 ॥

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जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै ।
ध्यान लगाकर सुनै सुनावै ॥
ताकौ कोई न रोग सतावै ।
पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥ 11 ॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना ।
अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना ॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै ।
शंका दिल में कभी न लावै ॥ 12 ॥

पाठ करावै दिन चालीसा ।
ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै ।
कमी नहीं काहू की आवै ॥ 13 ॥

बारह मास करै जो पूजा ।
तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही ।
उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं ॥ 14 ॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई ।
लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा ।
होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा ॥ 15 ॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी ।
सब में व्यापित हो गुण खानी ॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं ।
तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं ॥ 16 ॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै ।
संकट काटि भक्ति मोहि दीजै ॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी ।
दर्शन दजै दशा निहारी ॥ 17 ॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी ।
तुमहि अछत दुःख सहते भारी ॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में ।
सब जानत हो अपने मन में ॥ 18 ॥

रुप चतुर्भुज करके धारण ।
कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई ।
ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई ॥ 19 ॥

॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणीए
हरो वेगि सब त्रास ।
जयति जयति जय लक्ष्मीए
करो शत्रु को नाश ॥

रामदास धरि ध्यान नितए
विनय करत कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास परए
करहु दया की कोर ॥

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