रूस की ताकत माने जाने वाले S-400 की कमजोरी आई सामने, अंदरूनी रणनीति से डिफेंस सिस्टम को फेल करने का दावा
भारत ने 2018 में रूस के साथ पांच S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए एक समझौता किया था। हालांकि, सात साल बाद भी रूस सिर्फ तीन S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ही भारत को सप्लाई कर पाया है। रूस बाकी दो S-400 की डिलीवरी की तारीखें बार-बार बदल रहा है। अब, एक नए रिसर्च पेपर में रूसी एयर डिफेंस सिस्टम के बारे में अहम खुलासे हुए हैं। इसमें पता चला है कि यूक्रेन के फायदे के लिए रूस के एयर डिफेंस प्रोडक्शन को कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं।
"डिसरप्टिंग रशियन एयर डिफेंस प्रोडक्शन: रिक्लेमिंग द स्काई" नाम के एक रिसर्च पेपर में दावा किया गया है कि रूस के एयर डिफेंस सिस्टम का प्रोडक्शन काफी कमजोर हो गया है। रिसर्च पेपर में बताया गया है कि रूसी एयर डिफेंस सिस्टम और मॉडर्न सिस्टम कई अहम विदेशी टेक्नोलॉजी, मटीरियल और सप्लाई चेन पर निर्भर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इन कमजोरियों को निशाना बनाने से रूस के एयर डिफेंस मॉडर्नाइजेशन प्रोसेस में गंभीर रुकावट आ सकती है, जिससे यूक्रेन के लंबी दूरी के हमलों की असरदारता बढ़ेगी और यूरोप में सुरक्षा संतुलन मजबूत होगा।
रूस के एयर डिफेंस सिस्टम में बड़ी कमजोरी
रिसर्च पेपर में रूस के माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में सबसे बड़ी कमजोरी बताई गई है। रिसर्चर्स का कहना है कि रूस अभी भी रडार, मिसाइल गाइडेंस और एयर डिफेंस कमांड सिस्टम के लिए एडवांस्ड माइक्रोप्रोसेसर, खास सिरेमिक मटीरियल और मशीन टूल्स के लिए विदेशी सप्लाई पर निर्भर है। बेरिलियम ऑक्साइड सिरेमिक और एडवांस्ड चिप्स जैसे मटीरियल एयर डिफेंस सिस्टम के लिए खास तौर पर बहुत ज़रूरी हैं। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि अगर रूस की इन मटीरियल और टेक्नोलॉजी तक पहुंच को सीमित कर दिया जाए, तो पैंटसिर, S-सीरीज़ और दूसरे मॉडर्न सिस्टम के प्रोडक्शन और अपग्रेडिंग को धीमा किया जा सकता है।
रिसर्च पेपर में कहा गया है कि रूस के कई डिज़ाइन और टेस्टिंग प्रोसेस अभी भी एयर डिफेंस सिस्टम के सिमुलेशन, इंटीग्रेशन और परफॉर्मेंस वैलिडेशन में इस्तेमाल होने वाले विदेशी सॉफ्टवेयर टूल्स पर निर्भर हैं। इसलिए, इन कमजोरियों का फायदा उठाकर रूस में एयर डिफेंस सिस्टम के प्रोडक्शन को धीमा किया जा सकता है। रूस पहले से ही S-400 सप्लाई चेन को लेकर मुश्किलों का सामना कर रहा है और उसे प्रोडक्शन में बड़ी दिक्कतें आ रही हैं। अगर पश्चिमी देश प्रतिबंधों का दायरा बढ़ाते हैं, तो रूस खुद को एक बड़े सप्लाई चेन संकट में पा सकता है।