क्या बांग्लादेश बन रहा है दूसरा पाकिस्तान? जानिए दुबारा हिंसा के पीछे कौन-कौन से कट्टरपंथी संगठन
बांग्लादेश का जन्म 1971 में एक धर्मनिरपेक्ष, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के आधार पर हुआ था। शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में स्थापित यह देश लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समावेशिता के मूल्यों पर बना था। हालांकि, हाल के वर्षों में, बांग्लादेश में हिंसा, उग्रवाद और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में बढ़ोतरी देखी गई है। इससे यह सवाल उठता है: क्या बांग्लादेश उग्रवाद के रास्ते पर जा रहा है? और अगर ऐसा है, तो इसके पीछे कौन से संगठन और ताकतें हैं, जो इसे पाकिस्तान जैसे इस्लामिक चरमपंथी राज्य में बदलना चाहते हैं? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
उग्रवाद क्या है?
उग्रवाद का मतलब किसी धर्म या विचारधारा की कठोर और असहिष्णु व्याख्या है, जो अक्सर हिंसा को सही ठहराती है। बांग्लादेश के संदर्भ में, यह प्रवृत्ति एक ऐसी मानसिकता से जुड़ी है जो देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान को कमजोर करना चाहती है और इसे इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर ले जाना चाहती है। ठीक यही रास्ता पाकिस्तान ने अपनाया है। नतीजतन, पाकिस्तान में लोकतंत्र एक मज़ाक बन गया है, और धार्मिक पहचान ज़्यादा हावी हो गई है।
बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा
हाल के दिनों में, बांग्लादेश में हिंसा की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है। कभी शेख हसीना के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन होते हैं, तो कभी लोग दूसरे मुद्दों पर सड़कों पर उतर आते हैं। बांग्लादेश एक बार फिर हिंसा की चपेट में है। आइए पहले आपको ताज़ा घटना के बारे में बताते हैं और फिर यहां बार-बार होने वाली हिंसा के कारणों का पता लगाते हैं।
शरीफ उस्मान हादी की मौत
शरीफ उस्मान हादी नाम के एक युवा नेता की मौत के बाद बांग्लादेश के कई शहरों में फिर से हिंसा भड़क उठी है। हादी पर ढाका में चुनाव प्रचार के दौरान अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी थी। गोली लगने के बाद हादी को इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया, जहां अस्पताल में उनकी मौत हो गई। हादी ने शेख हसीना के खिलाफ हिंसक विद्रोह में अहम भूमिका निभाई थी। हिंसक विरोध प्रदर्शनों के कारण हसीना को प्रधानमंत्री पद के साथ-साथ देश भी छोड़ना पड़ा था।
बांग्लादेश में हिंसा क्यों भड़कती है?
बांग्लादेश में हिंसा के कई कारण हैं, जिनमें राजनीतिक ध्रुवीकरण को सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है। अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के बीच हमेशा से ज़बरदस्त टकराव रहा है। चुनाव के समय हिंसा आम बात हो जाती है। इसके अलावा, चरमपंथी संगठनों की गतिविधियां भी हिंसा का एक बड़ा कारण हैं। ये संगठन धार्मिक भावनाओं को भड़काते हैं और समाज में तनाव पैदा करते हैं।
वे संगठन जो बांग्लादेश को पाकिस्तान बनाना चाहते हैं
अब हम आपको उन संगठनों के बारे में बताते हैं जो बांग्लादेश को पाकिस्तान बनाना चाहते हैं। इन संगठनों में सबसे पहला नाम जमात-ए-इस्लामी का है। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश का सबसे पुराना और सबसे प्रभावशाली संगठन रहा है। 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान, इस संगठन पर पाकिस्तानी सेना का समर्थन करने का आरोप लगा था, जिस वजह से इसे आज भी शक की नज़र से देखा जाता है। जमात एक इस्लामिक राज्य की वकालत करता है, जो बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष छवि से बिल्कुल अलग है।
हिफाज़त-ए-इस्लाम
यह बांग्लादेश का एक प्रमुख देवबंदी इस्लामिक संगठन है। यह संगठन मदरसों से जुड़ा है और सख्त इस्लामिक कानूनों की वकालत करता है। यह महिलाओं के अधिकारों, अभिव्यक्ति की आज़ादी और अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाता है। इसके आंदोलन अक्सर हिंसक हो जाते हैं।
अंसारुल्लाह बांग्ला टीम
यह एक कट्टर आतंकवादी संगठन है जिस पर ब्लॉगर, लेखकों और धर्मनिरपेक्ष विचारकों की हत्या का आरोप है। इसका मकसद बांग्लादेश में शरिया कानून लागू करना है। कहा जाता है कि अंसारुल्लाह बांग्ला आतंकवादी संगठन अल-कायदा से प्रेरित है।
जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश
जमात-उल-मुजाहिदीन का बांग्लादेश में बम धमाकों और आतंकवादी गतिविधियों का लंबा इतिहास रहा है। यह संगठन खुले तौर पर एक इस्लामिक खिलाफत की बात करता है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को 'गैर-इस्लामिक' मानता है। इसने बार-बार कहा है कि यह बांग्लादेश की राजनीतिक व्यवस्था का विरोध करता है।
पाकिस्तान के साथ वैचारिक समानताएँ
अब आप बांग्लादेश के संगठनों और उनकी विचारधाराओं के बारे में जान चुके हैं। यह साफ है कि इन संगठनों की विचारधारा पाकिस्तान की चरमपंथी सोच को दिखाती है। दुनिया ने धार्मिक चरमपंथ के हावी होने के कारण पाकिस्तान में लोकतंत्र की हालत देखी है। इसके अलावा, वहाँ अल्पसंख्यकों के अधिकार लगभग न के बराबर हैं, और उनके साथ भेदभाव और उत्पीड़न आम बात है। इस स्थिति को देखते हुए, अब बांग्लादेश में भी चरमपंथी संगठनों से इसी तरह का खतरा साफ दिख रहा है।
बांग्लादेश को अपना भविष्य खुद तय करना होगा
चरमपंथ का असर भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी पड़ता है। सीमा सुरक्षा, आतंकवाद और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे मुद्दे दोनों देशों के लिए संवेदनशील हैं। एक स्थिर, धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र के हित में है। अगर बांग्लादेश अपनी पहचान बनाए रखना चाहता है, तो उसे न सिर्फ चरमपंथी संगठनों से सख्ती से निपटना होगा, बल्कि समाज के हर स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों को भी मजबूत करना होगा। यही एकमात्र रास्ता है जो उसे हिंसा से दूर और एक स्थिर भविष्य की ओर ले जा सकता है।