डील या डंप’? Su-57 को पूरी दुनिया से मिला रिजेक्शन अब भारत को बेचने की फिराक में रूस, क्या वाकई ‘कबाड़’ पर दांव लगाएगा इंडिया ?
सुखोई Su-57 रूस का पहला पाँचवीं पीढ़ी का स्टील्थ लड़ाकू विमान है। रूस ने इसे अमेरिका के F-22 और F-35 का प्रतिस्पर्धी बनाने की कोशिश की थी। लेकिन कई विशेषज्ञों का दावा है कि रूस ऐसा करने में विफल रहा है। रूस ने 2018 में Su-57 लड़ाकू विमान के निर्यात संस्करण 'Su-57E' को बाज़ार में उतारा था। रूस को उम्मीद थी कि उसके लड़ाकू विमान को अमेरिका विरोधी मानसिकता वाले देश आसानी से स्वीकार कर लेंगे। लेकिन रूस का सपना, सपना ही रह गया। पिछले सात सालों में रूस ने दर्जनों देशों के सामने अपने पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान का प्रदर्शन किया, एयर शो में भेजा, लेकिन सिर्फ़ अल्जीरिया ने ही रूस के साथ सौदा किया। जबकि अमेरिकी F-35 लड़ाकू विमान का संचालन अमेरिका के एक दर्जन से ज़्यादा सहयोगी देश करते हैं। इसके अलावा, रूस अपनी वायुसेना के लिए बड़ी संख्या में Su-57 भी नहीं बना पा रहा है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि Su-57 लड़ाकू विमान में देशों की रुचि न होने का कारण इसकी कमज़ोर तकनीक है। कई पश्चिमी विशेषज्ञों का दावा है कि इसकी स्टील्थ क्षमता केवल 'कागज़ी' है और यह F-35 की तुलना में चौथी पीढ़ी के विमान से ज़्यादा कुछ नहीं है। अमेरिकी और यूरोपीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इसका रडार क्रॉस सेक्शन आज की पाँचवीं पीढ़ी की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं है। कुछ रिपोर्टों का दावा है कि Su-57 का स्टील्थ प्रोफ़ाइल एक सामान्य चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान के बराबर है।
Su-57 लड़ाकू विमान की विश्वसनीयता पर उठे सवाल
नेशनल सिक्योरिटी जर्नल में लिखते हुए, रक्षा विशेषज्ञ क्रिश्चियन ऑर लिखते हैं कि Su-57 लड़ाकू विमान के एयरफ्रेम की फिटिंग में खामियाँ देखी गई हैं। इसके अलावा, इस विमान में लगा उन्नत रडार सिस्टम और नई पीढ़ी का इंजन भी अभी पूरी तरह तैयार नहीं है। उन्होंने कहा है कि इसका मतलब है कि Su-57 सुपरक्रूज़ या एकीकृत नेटवर्क युद्ध जैसी क्षमताओं में F-35 से अभी भी कई साल पीछे है। वर्तमान में, दुनिया के तीन देश पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाते हैं। अमेरिका के पास दो तरह के स्टील्थ लड़ाकू विमान हैं, F-22 रैप्टर और F-35 लाइटनिंग II, चीन के पास J-20 और J-35 और रूस के पास सुखोई Su-57। भारत अपने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट पर काम कर रहा है, लेकिन इसे चालू होने में कम से कम 10 साल और लगेंगे।
ऐसे में, अमेरिकी F-22, F-35 और चीनी J-20, J-35 की तुलना में, सबसे ज़्यादा सवाल रूसी Su-57 को लेकर हैं। अब तक 15 से ज़्यादा देश F-35 खरीद चुके हैं और F-16 25 से ज़्यादा देशों की वायुसेनाओं की रीढ़ है, जबकि Su-57 सिर्फ़ अल्जीरिया ने ही खरीदा है, वो भी सिर्फ़ 14 यूनिट। इससे पहले, भारत भी FGFA प्रोजेक्ट (पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान) के तहत Su-57 कार्यक्रम का हिस्सा था, लेकिन कमज़ोर तकनीक के कारण भारत ने इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया था। इसके पीछे की वजह कमज़ोर स्टील्थ क्षमता थी। इसके अलावा, रूस भारत के साथ पूरी तरह पारदर्शी नहीं था और परियोजना की लागत बहुत ज़्यादा थी। रूस ने भारत को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन भारत इस परियोजना में शामिल नहीं हुआ। इससे रूस के हथियार बाज़ार को गहरा धक्का लगा। रूस ने अपने मिग-29 और एसयू-30 जैसे विमान 30 से ज़्यादा देशों को बेचे थे, लेकिन एसयू-57 एक अदद ग्राहक के लिए तरसता रहा।
उत्पादन और क्षमता पर भी सवाल
रूस ने अब तक एसयू-57 की सिर्फ़ 30-35 इकाइयाँ ही बनाई हैं। इनमें से ज़्यादातर प्री-प्रोडक्शन यूनिट में हैं। रूस की अपनी वायुसेना में भी इसका इस्तेमाल बहुत कम हुआ है। रूस यूक्रेन युद्ध में एसयू-57 का इस्तेमाल करके अपनी ताकत साबित कर सकता था, लेकिन एसयू-57 कोई खास असर नहीं छोड़ पाया। जबकि एफ़-35 ने दर्जनों मिशन पूरे किए हैं। विभिन्न प्रतिबंधों, तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला और धन की कमी के कारण रूस इसका उत्पादन नहीं कर पा रहा है। अमेरिका जहाँ हर साल एफ़-35 की 100 इकाइयाँ बना रहा है, वहीं रूस की वार्षिक उत्पादन क्षमता 10 से भी कम है। ऐसे में कोई देश इसे कैसे खरीदेगा? कीमत की बात करें तो Su-57 की एक यूनिट की कीमत लगभग 35 से 40 मिलियन डॉलर यानी लगभग 2900 से 3300 करोड़ रुपये है। जबकि F-35 की कीमत लगभग 80 से 110 मिलियन डॉलर है।
अल्जीरिया ने रूस के साथ सौदा करके उसे थोड़ी राहत ज़रूर दी है, लेकिन फ़िलहाल कोई और ग्राहक नहीं है। भारत अपने AMCA कार्यक्रम को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है, जबकि वियतनाम, UAE और मिस्र जैसे संभावित खरीदार अभी भी दूरी बनाए हुए हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या भारत तात्कालिक ज़रूरतों को देखते हुए Su-57 लड़ाकू विमान पर दांव लगाएगा? रूस ने भारत को तकनीक हस्तांतरण के साथ-साथ सोर्स कोड भी सौंपने की पेशकश की है। इसके अलावा, रूस ने AMCA में तकनीकी मदद देने की भी बात कही है, फिर भी तकनीक में देरी, उत्पादन में अस्थिरता, स्टील्थ क्षमता की आलोचना और निर्यात में विफलता जैसे कई सवाल भारत के सामने हैं। अगर भारत Su-57 खरीदता है तो राफेल की तरह इस लड़ाकू विमान का भाग्य भी बदल जाएगा, लेकिन अगर भारत भी पीछे हटता है तो रूसी लड़ाकू विमान SU-57 का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।