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पहले S-400 मिसाइल अब रूसी तेल, 'गुटनिरपेक्ष' भारत को अपने इशारे पर नचाना चाहते हैं नाटो देश, हर बार मिली मात

 

यूक्रेन युद्ध के कारण रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। इस संघर्ष में, रूस की सैन्य शक्ति के प्रति पश्चिमी देशों की निराशा साफ़ देखी जा सकती है। ख़ासकर, यूक्रेन युद्ध में रूस की लगातार बढ़त और पश्चिमी देशों की लगातार नाकामी ने उन्हें रणनीतिक रूप से काफ़ी असहज कर दिया है। इसी के चलते अब अमेरिका और नाटो देशों का ध्यान रूस के व्यापारिक साझेदारों जैसे भारत और चीन पर केंद्रित हो गया है।

रूस से तेल ख़रीदने पर 500 प्रतिशत तक टैरिफ़

अमेरिका ने हाल ही में एक विधेयक पेश किया है जिसमें रूस से तेल ख़रीद पर 500 प्रतिशत तक टैरिफ़ लगाने का प्रस्ताव है। साथ ही, नाटो महासचिव मार्क रूट ने भारत और चीन को चेतावनी दी है कि अगर रूस अगले 50 दिनों में शांति के लिए तैयार नहीं होता है, तो इन देशों को रूस से तेल ख़रीद पर 100 प्रतिशत का द्वितीयक टैरिफ़ झेलना पड़ेगा। यह चेतावनी भारत के लिए नई नहीं है, क्योंकि पहले भी पश्चिमी देशों ने भारत पर रूस से संबंध तोड़ने का दबाव डाला था।

भारत न झुकेगा, न डरेगा

भारत ने इस दबाव को नज़रअंदाज़ करते हुए अपनी स्वतंत्र और रणनीतिक नीति बनाए रखी है। पिछले साल जब भारत ने रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी थी, तब भी अमेरिका ने भारत को धमकी दी थी। अमेरिका ने कहा था कि अगर भारत रूस से यह प्रणाली खरीदता है, तो उस पर CAATSA (प्रतिबंधों के माध्यम से अमेरिका के विरोधियों का मुकाबला करने का अधिनियम) के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है। लेकिन भारत ने अपने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए इस सौदे को जारी रखा और साबित कर दिया कि देश की सुरक्षा के लिए यह कदम ज़रूरी था।

रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणाली खरीदने का भारत का फ़ैसला तब सही साबित हुआ जब इस प्रणाली ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान द्वारा दागी गई मिसाइलों से भारत की रक्षा की। यही वजह है कि भारत ने किसी भी विदेशी दबाव को नकारते हुए रूस के साथ अपने संबंधों को मज़बूत किया है।

रूस से तेल खरीदने से पीछे नहीं हटेगा भारत

अब यूक्रेन युद्ध के बीच, जब नाटो देशों को यह एहसास हो गया है कि वे रूस को दबा नहीं पा रहे हैं, तो वे भारत को निशाना बनाने की धमकियाँ दे रहे हैं। इन धमकियों का कोई असर नहीं हुआ और भारत ने नाटो देशों को साफ़ संदेश दे दिया कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए रूस से तेल खरीदने से पीछे नहीं हटेगा।

इस संकट के दौरान भारत ने न सिर्फ़ अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया, बल्कि वैश्विक तेल की कीमतों को भी नियंत्रण में रखा। भारत ने रूस से खरीदे गए तेल को परिष्कृत करके यूरोपीय देशों को आपूर्ति की, जिससे दुनिया भर के देशों को लाभ हुआ। नाटो देशों के बीच बढ़ते उन्माद और धमकियों के बावजूद, भारत अपनी इस नीति पर कायम रहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हित में काम करेगा, चाहे इससे पश्चिम को कितनी भी चिढ़ क्यों न हो।