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घुटनों पर बैठे 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक, बंदूकें ताने खड़ी इंडियन आर्मी... पाकिस्तान की सबसे शर्मनाक शाम की कहानी

 

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध दक्षिण एशिया के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक लड़ाइयों में से एक माना जाता है। इस युद्ध ने भारतीय सेना को दो मोर्चों पर लड़ा और महज 13 दिनों की कठोर लड़ाई के बाद पाकिस्तान की सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध को 'भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971' या 'बांग्लादेश मुक्ति युद्ध' के नाम से भी जाना जाता है। इस युद्ध का नतीजा न केवल पाकिस्तान के विभाजन के रूप में सामने आया बल्कि पूर्वी पाकिस्तान से एक नया राष्ट्र – बांग्लादेश का जन्म हुआ।

युद्ध की पृष्ठभूमि और कारण

पूर्वी पाकिस्तान (जो आज बांग्लादेश है) के लोग खुद को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग देश बनाना चाहते थे। वे अपने सांस्कृतिक, भाषाई और राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्षरत थे। शेख मुजीबुर रहमान इस स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में एक अलग राष्ट्र की मांग की अगुवाई की।

पाकिस्तानी सेना ने इस मांग को दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में हिंसक कार्रवाई शुरू कर दी। इस दौरान बंगाली नागरिकों पर भारी अत्याचार हुए। छात्रों की गोली मारकर हत्या, महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाओं ने पूरे क्षेत्र को आतंकित कर दिया। इसी बीच मुक्ति वाहिनी का गठन हुआ, जो पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रही थी। भारत सरकार ने भी इस आंदोलन का समर्थन शुरू किया था, क्योंकि भारत चाहता था कि पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ हो रहे अत्याचारों का अंत हो।

युद्ध की शुरुआत

भारतीय सेना युद्ध में शामिल होने के लिए अवसर का इंतजार कर रही थी। पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को 'ऑपरेशन चंगेज़ खान' के तहत भारतीय क्षेत्र में वायुसेना से हमला कर युद्ध का बिगुल फूंका। इस घटना के बाद भारत ने दोनों मोर्चों पर खुलकर युद्ध छेड़ दिया। पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तान की सेना के खिलाफ अभियान चलाया तो पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को घेरा।

13 दिनों में निर्णायक विजय

यह युद्ध 16 दिसंबर 1971 तक चला। 13 दिनों की तेज़ लड़ाई के बाद पाकिस्तान की सेना ने ढाका में भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। यह घटना इतिहास में बेहद अनोखी थी क्योंकि एक साथ 93,000 पाकिस्तानी सैनिक हथियार डालकर भारतीय सेना के सामने झुके। दुनियाभर में यह पहली बार हुआ था कि इतनी बड़ी संख्या में हथियार बंद सैनिक बिना किसी शर्त के समर्पित हुए हों।

युद्ध के परिणाम और महत्व

1971 का युद्ध पाकिस्तान के लिए एक भारी हार और मानसिक धक्का था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्रता मिली और बांग्लादेश नामक नया देश अस्तित्व में आया। इस युद्ध ने दक्षिण एशियाई राजनीति और क्षेत्रीय समीकरणों को पूरी तरह से बदल दिया। भारत की विजय ने उसकी सैन्य ताकत, रणनीतिक कौशल और क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाया। वहीं पाकिस्तान की हार ने उसकी सैन्य और राजनीतिक प्रतिष्ठा को झटका दिया, जिससे पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक माहौल पर भी गहरा असर पड़ा।

वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रिया

1971 के युद्ध की अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण थी। कई पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका, पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे, जबकि सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया। यह युद्ध शीत युद्ध के दौरान भी सामरिक और राजनीतिक टकराव का हिस्सा बना। 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध न केवल एक सैन्य संघर्ष था, बल्कि मानवाधिकार, स्वतंत्रता, और आत्मनिर्णय का युद्ध भी था। इस युद्ध ने बांग्लादेश को जन्म दिया और दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक नक्शे को बदल दिया। भारतीय सेना की वीरता और रणनीतिक कौशल ने इसे एक ऐतिहासिक विजय बनाया, जो आज भी देशवासियों के लिए गर्व का विषय है।

यह युद्ध हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता की चाहत और न्याय की लड़ाई में कठिनाइयां चाहे कितनी भी हों, लेकिन अंततः सत्य और न्याय की जीत होती है। 1971 का युद्ध इतिहास में उस समय की सबसे तेजी से जीती गई लड़ाइयों में गिना जाता है, जिसने आज़ादी के सपनों को साकार किया और एक नई राष्ट्र की नींव रखी।