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यूरोप के बाद इजरायल को इन दो देशों ने भी दिया 440 वोल्ट का झटका, एकबार फिर हाथ लगी निराशा और तनाव 

 

फ्रांस और ब्रिटेन समेत करीब डेढ़ दर्जन देशों के दबाव का सामना कर रहे इज़राइल को एक और झटका लगा है। अब ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि वह अगले महीने होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ़िलिस्तीन को मान्यता देगा। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने इसकी घोषणा की है। उनका कहना है कि गाजा में जारी हिंसा को रोकने के लिए फ़िलिस्तीन को मान्यता मिलना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि दो-राष्ट्र समाधान ही कारगर होगा और यह मानवता के हित में होगा। इसके साथ ही इज़राइल पर दबाव बढ़ गया है। पहले ही फ्रांस और ब्रिटेन समेत कई बड़े यूरोपीय देश इज़राइल को सलाह दे चुके हैं कि अगर युद्ध नहीं रुका तो वे फ़िलिस्तीन को मान्यता दे देंगे।

इज़राइल के लिए चिंता की बात यह भी है कि ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ न्यूज़ीलैंड भी फ़िलिस्तीन को मान्यता देने पर विचार कर रहा है। न्यूज़ीलैंड का कहना है कि वह भी इस पर विचार कर रहा है। कीवी प्रधानमंत्री विंस्टन पीटर्स ने कहा कि हमारा देश भी इस पर गंभीरता से विचार कर रहा है। हम अगले महीने इस पर कोई बड़ा फैसला लेंगे। इस तरह ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने साफ़ कर दिया है कि वे फ़िलिस्तीन को मान्यता देने के लिए यूके, फ़्रांस और कनाडा जैसे देशों की राह पर चलेंगे।

अल्बानीज़ ने कहा कि फ़िलिस्तीन को ऑस्ट्रेलिया मान्यता देगा। हमारी शर्त यह होगी कि फिलिस्तीन प्राधिकरण ही सरकार चलाए। हमास का गाजा में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, गाजा में चुनाव कराकर नया नेतृत्व भी चुना जाना चाहिए। कैबिनेट बैठक के बाद अल्बानीज़ ने कहा कि फिलिस्तीन को लेकर हमारी सरकार में आम सहमति है। हमारा स्पष्ट मानना है कि शांति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए द्वि-राज्य समाधान ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन प्राधिकरण ने स्पष्ट कर दिया है कि हमास का सरकार में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। इसके अलावा, निरस्त्रीकरण भी होना चाहिए। गाजा में 2006 के बाद से कोई चुनाव नहीं हुआ है, जो अब होगा।

इस बीच, ऑस्ट्रेलिया की इस योजना को लेकर इज़राइल भड़क गया है। ऑस्ट्रेलिया में इज़राइल के राजदूत अमीर मैमन ने कहा कि यह फ़ैसला इज़राइल की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ करने वाला है। उन्होंने कहा कि हम शांति के लिए लड़ रहे हैं। ऐसे फ़ैसले से हमारी लड़ाई प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए लड़ना होगा, तभी शांति आ सकती है। अगर आतंकवाद को पुरस्कृत किया जाएगा तो शांति कैसे स्थापित हो सकती है।