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सरिस्का के जंगलों में छिपा मुगलों की साजिश का गवाह, वीडियो में एखे उस किले की कहानी जहाँ भाई ने भाई को ही कर दिया कैद 

 

राजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का टाइगर रिज़र्व की गहराइयों में छिपा एक ऐतिहासिक रत्न है—कंकवारी किला (Kankwari Fort)। यह किला न केवल अपनी स्थापत्य कला और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि यह इतिहास के उन पन्नों में भी दर्ज है जहाँ राजनीति, कैद और संघर्ष की कहानियां जीवंत रूप से मौजूद हैं। अरावली की पहाड़ियों में स्थित यह दुर्ग राजस्थान के कई दुर्गों की तरह न सिर्फ शाही इतिहास का गवाह रहा है, बल्कि एक दर्दनाक राजनीतिक घटनाक्रम का साक्षी भी है।

मुग़ल इतिहास से जुड़ी है कंकवारी की पहचान

कंकवारी किले का नाम सबसे पहले इतिहास में तब प्रमुखता से आया जब मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने अपने सगे भाई दारा शिकोह को यहीं कैद किया था। औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच गद्दी के लिए संघर्ष उस समय अपने चरम पर था। दारा शिकोह, जो अपने उदार विचारों और हिंदू-मुस्लिम समन्वय की नीति के लिए जाना जाता था, औरंगज़ेब की कट्टर धार्मिक सोच के विरुद्ध था।औरंगज़ेब को जब यह महसूस हुआ कि दारा उसके लिए चुनौती बन सकता है, तो उसने दारा को युद्ध में हराकर बंदी बना लिया और उसे इस सुनसान, दुर्गम और वन्य क्षेत्र के बीच स्थित कंकवारी दुर्ग में कैद कर दिया। किले की ऊंचाई और दुर्गमता ने इसे एक उपयुक्त जेल बना दिया, जहाँ से भागना लगभग असंभव था। दारा शिकोह ने यहां कई महीने एकांत में बिताए और अंततः औरंगज़ेब द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया।

स्थापत्य और बनावट में छिपा है रहस्य

कंकवारी किले का निर्माण राजस्थान के पारंपरिक स्थापत्य शैली में किया गया है। हालांकि यह किला आकार में बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन इसकी बनावट इसे विशेष बनाती है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जहाँ से चारों ओर की वादियों और जंगलों का विस्तृत दृश्य दिखाई देता है। इस दुर्ग में पुराने समय की घुमावदार सीढ़ियाँ, बंद दरवाजे, खंडहर होते झरोखे और कुछ क्षतिग्रस्त दीवारें आज भी उस दौर की गवाही देती हैं।कहते हैं कि किले की दीवारों पर कभी सुंदर भित्तिचित्र और मुगल शैली की नक्काशी हुआ करती थी, जिनमें से अब कुछ ही अवशेष बचे हैं। अंदरूनी कक्ष छोटे-छोटे हैं, जो कभी कैदियों के रहने के लिए या सैनिकों के विश्राम स्थल के रूप में उपयोग में लाए जाते थे।

सरिस्का अभयारण्य के बीच स्थित, दुर्गमता ही इसकी सुरक्षा थी

कंकवारी किला सरिस्का टाइगर रिजर्व के बीचोबीच स्थित है। आज इसे देखने के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, क्योंकि यह क्षेत्र वन्य जीवों के लिए संरक्षित है। दुर्ग तक पहुँचने के लिए पर्यटकों को कई किलोमीटर जंगल के भीतर सफर तय करना होता है। किले तक की यात्रा खुद में एक रोमांचक अनुभव है—घने जंगलों से गुजरते हुए, जहां बाघ, तेंदुए, सियार और विभिन्न प्रकार के पक्षियों की उपस्थिति इस यात्रा को और रहस्यमय बना देती है।यही कारण है कि किले की यह दुर्गमता, कभी कैदियों को यहाँ से भागने से रोकने में मददगार थी, तो अब यह इसे बाहरी हस्तक्षेप से बचाती है।

किले के साथ जुड़े लोककथाएं और रहस्य

कई स्थानीय लोग मानते हैं कि किले के चारों ओर अब भी दारा शिकोह की आत्मा भटकती है। कुछ लोगों ने यहां विचित्र ध्वनियों और रहस्यमय घटनाओं का दावा किया है। हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन कंकवारी किले के सुनसान, वीरान और गूंजती दीवारों के बीच खड़े होकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अतीत की हलचलें महसूस हो सकती हैं।

संरक्षण और पर्यटन की स्थिति

कंकवारी किला फिलहाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन है, लेकिन इसका संरक्षण उतना व्यापक नहीं है जितना कि इसके ऐतिहासिक महत्व के लिहाज से होना चाहिए। चूंकि यह किला सरिस्का के जंगल क्षेत्र के भीतर है, इसलिए यहां तक पहुंचना भी आसान नहीं है। हाल के वर्षों में पर्यटन विभाग ने इसे एक आकर्षक हेरिटेज स्पॉट के रूप में प्रचारित करना शुरू किया है, लेकिन पर्यटकों की संख्या सीमित ही रहती है।जो भी पर्यटक यहां तक पहुंचते हैं, उन्हें इतिहास, प्रकृति और रहस्य का अनोखा संगम देखने को मिलता है।