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रणकपुर जैन मंदिर को क्यों माना जाता है इसे जैन धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल? वायरल डॉक्यूमेंट्री में जाने कब और किसने कराया निर्माण 

 

भारत के राजस्थान राज्य में स्थित रणकपुर जैन मंदिर को जैन धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे पवित्र और भव्य तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। यह मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला, गहराई से जुड़ी आस्था और ऐतिहासिक महत्ता के कारण न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि वास्तुशिल्प प्रेमियों और पर्यटकों के लिए भी एक अद्भुत स्थल है। अरावली की गोद में बसे इस मंदिर का निर्माण एक प्रेरक कथा, बेमिसाल कारीगरी और जैन धर्म के मूल्यों से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं कि रणकपुर जैन टेम्पल को इतना पवित्र क्यों माना जाता है, इसका निर्माण कब और किसने करवाया।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/YMVP1lbMWGM?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/YMVP1lbMWGM/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="Ranakpur Jain Temple | रणकपुर जैन मंदिर का इतिहास, वास्तुकला, मान्यता, दर्शन, कब और किसने बनवाया" width="1250">
कब और किसने करवाया रणकपुर जैन मंदिर का निर्माण?
रणकपुर जैन मंदिर का निर्माण कार्य 15वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ था। इतिहास के अनुसार, सेठ धरणा शाह, जो मेवाड़ राज्य के एक प्रभावशाली जैन व्यापारी थे, उन्हें एक स्वप्न आया जिसमें भगवान आदिनाथ (जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर) ने उन्हें भव्य मंदिर बनवाने की प्रेरणा दी। इस दिव्य स्वप्न के बाद धरणा शाह ने मेवाड़ के तत्कालीन शासक राणा कुंभा से अनुमति लेकर रणकपुर गांव में इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।राणा कुंभा ने न सिर्फ भूमि दान में दी, बल्कि निर्माण कार्य में भी पूर्ण सहयोग दिया। इसी कारण इस मंदिर का नाम "रणकपुर" रखा गया, जो राणा कुंभा के नाम पर आधारित है।

वास्तुकला की मिसाल: क्यों है यह मंदिर खास?
रणकपुर जैन मंदिर को जैन वास्तुकला की सबसे श्रेष्ठ उपलब्धियों में गिना जाता है। यह मंदिर पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बना है और इसकी निर्माण शैली इतनी अद्वितीय है कि इसे देखने वाले लोग स्तब्ध रह जाते हैं।
यह मंदिर करीब 48,000 वर्ग फीट क्षेत्र में फैला हुआ है।
इसमें कुल 1,444 नक्काशीदार खंभे हैं, और खास बात यह है कि हर खंभा अपनी बनावट में दूसरे से अलग है।
मंदिर के भीतर 80 से अधिक गुम्बद (डोम), 400 स्तंभ और 29 विशाल मंडप (हॉल) हैं।
मंदिर का मुख्य कक्ष भगवान आदिनाथ को समर्पित है और उनकी चारों दिशाओं में प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
यहां की नक्काशी इतनी बारीक और जीवंत है कि पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां मानो सांस लेती हुई प्रतीत होती हैं। खंभों की पॉलिश और छतों पर उकेरे गए कमल पुष्प जैसे चित्र जैन संस्कृति की आध्यात्मिकता को दर्शाते हैं।

आध्यात्मिक महत्व: क्यों है यह सबसे पवित्र?
रणकपुर मंदिर सिर्फ एक वास्तुशिल्प चमत्कार नहीं, बल्कि यह जैन आस्था और अहिंसा के मूल सिद्धांतों का प्रतीक भी है। यह मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है, जिन्हें "ऋषभदेव" भी कहा जाता है। जैन दर्शन में आदिनाथ को धर्म का मूल स्तंभ माना जाता है।यह स्थान जैन साधकों और श्रावकों के लिए तप, ध्यान और आत्मचिंतन का केंद्र है। यहां आने वाले श्रद्धालु न सिर्फ दर्शन करते हैं, बल्कि कई लोग यहां बैठकर ध्यान और स्वाध्याय भी करते हैं।रणकपुर जैन टेम्पल को खासतौर पर शांतिपूर्ण ऊर्जा और दिव्यता के लिए जाना जाता है, जो हर आगंतुक को भीतर तक छू जाती है। यही कारण है कि इसे जैनियों का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल कहा जाता है।

पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए भी खास
रणकपुर मंदिर की खूबसूरती और इतिहास न सिर्फ धार्मिक यात्रियों को आकर्षित करता है, बल्कि इतिहासकारों, वास्तुविदों और फोटोग्राफर्स के लिए भी यह एक अद्वितीय स्थल है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित यह मंदिर आज भी उसी वैभव के साथ खड़ा है जैसे सदियों पहले खड़ा था।इसके अलावा, रणकपुर के आसपास की प्राकृतिक सुंदरता – पहाड़, जंगल और शांत वातावरण – इस तीर्थस्थल को और भी आकर्षक बनाते हैं।