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भारत की विज्ञान परंपरा का गौरवशाली प्रतीक है जंतर मंतर जयपुर, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए कैसे करता था बिना तकनीक के खगोलीय गणना

 

राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित जंतर मंतर न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह भारतीय खगोलशास्त्र की प्राचीन परंपरा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण भी है। यह खगोलीय वेधशाला महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 1728 से 1734 के बीच बनवाई गई थी। यह भारत में मौजूद पाँच प्रमुख जंतर मंतर वेधशालाओं में से सबसे विशाल और संरक्षित स्थल है, जिसे 2010 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में घोषित किया गया।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/SB6YAxlTIXg?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/SB6YAxlTIXg/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="Jantar Mantar Jaipur | जंतर-मंतर जयपुर, सूर्य घडी, सम्राट यंत्र, जय प्रकाश यंत्र, दिशा और राम यंत्र" width="1250">
स्थापत्य और उद्देश्य

जंतर मंतर का निर्माण पत्थर और संगमरमर से किया गया है और यह कुल 19 विशाल यंत्रों का समूह है। इसका प्रमुख उद्देश्य था — खगोलीय घटनाओं का सटीक निरीक्षण करना, समय और ग्रहों की गति को मापना, सूर्य की स्थिति को जानना और राशियों की गणना करना। यह सभी यंत्र बिना किसी आधुनिक तकनीक के सटीक गणना करने की क्षमता रखते हैं।महाराजा जयसिंह स्वयं एक विद्वान खगोलशास्त्री थे और उन्होंने भारत के अलावा अरब और यूरोपीय खगोलविदों की पद्धतियों का भी गहन अध्ययन किया था। इस वेधशाला का डिज़ाइन उन्होंने खुद तैयार करवाया था ताकि सौर मंडल की गतिविधियों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जा सके।

जंतर मंतर के प्रमुख यंत्र
इस वेधशाला में कई विशिष्ट यंत्र हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

सम्राट यंत्र: यह विश्व की सबसे बड़ी सूर्यघड़ी है, जिसकी ऊँचाई लगभग 27 मीटर है। यह यंत्र स्थानीय समय को मात्र 2 सेकंड की त्रुटि से माप सकता है।

जय प्रकाश यंत्र: यह दो अर्धगोलाकार संरचनाओं से बना है और खगोलीय पिंडों की स्थिति जानने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें खगोलीय पिंडों की छाया जमीन पर पड़ती है, जिससे उनकी स्थिति और राशि का ज्ञान होता है।

राम यंत्र: इसका उपयोग ऊंचाई और कोण मापने के लिए किया जाता है। इसमें कोई भी तारा या ग्रह दिखाई दे रहा हो, उसकी ऊंचाई को आसानी से मापा जा सकता है।

नाड़ी वाल यंत्र: इसे द्रव्यमान का समय जानने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह यंत्र विशेष रूप से मध्याह्न समय की गणना के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

कर्क यंत्र और वृश्चिक यंत्र: इनका उपयोग विशेष रूप से वर्ष के दो महत्वपूर्ण संक्रांति बिंदुओं की गणना के लिए किया जाता है।

सांस्कृतिक और पर्यटन महत्व
आज जंतर मंतर न केवल एक वैज्ञानिक धरोहर है, बल्कि यह जयपुर के प्रमुख पर्यटक स्थलों में भी शामिल है। यहां देश-विदेश से हजारों पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं जो इसकी वास्तुकला और खगोलशास्त्रीय विशेषताओं से मोहित हो जाते हैं। यह स्थल विशेष रूप से उन छात्रों, शोधकर्ताओं और विज्ञान प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो प्राचीन भारत की वैज्ञानिक क्षमता को जानना चाहते हैं।इसके अलावा, जयपुर में आमेर किला, सिटी पैलेस और हवा महल जैसे ऐतिहासिक स्थलों के पास स्थित होने के कारण यह स्थल जयपुर दर्शन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है।

आधुनिक समय में महत्व
आज के डिजिटल युग में जहां तकनीक हर पल बदल रही है, वहीं जंतर मंतर हमें उस समय की याद दिलाता है जब खगोलीय गणनाएं बिना किसी कंप्यूटर या उपग्रह के, मात्र बुद्धिमत्ता और गणितीय कौशल से की जाती थीं। यह वेधशाला यह सिद्ध करती है कि भारत में विज्ञान और खगोलशास्त्र की परंपरा कितनी समृद्ध और सटीक रही है।राजस्थान सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इस धरोहर का संरक्षण बहुत बारीकी से किया गया है। साथ ही, समय-समय पर यहां पर खगोलीय प्रदर्शनियां, शैक्षणिक भ्रमण और वैज्ञानिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।