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जवाई बांध की वादियों में लेपर्ड सफारी से लेकर सनसेट व्यू तक, वीडियो में जानिए क्यों बन रहा है ये राजस्थान का नया ट्रेवल हॉटस्पॉट

 

पत्थरों से ढकी अरावली की पहाड़ियों के बीच बसे जवाई बाँध (पाली ज़िला) की घाटियाँ इन दिनों सोशल मीडिया फीड और ट्रैवल ब्लॉग्स पर छायी हुई हैं। कभी‐कभार दिख जाने वाले तेंदुओं को यहाँ रोज़ देखा‑सुना जा रहा है, और सुरमई झील में डूबता सूरज पर्यटकों को बार‑बार वापस खींच ला रहा है। पर यह चमक महज़ सुंदर दृश्यों तक सीमित नहीं है; Jawai दरअसल ग्रामीण आजीविका, सामुदायिक संरक्षण और एडवेंचर टूरिज़्म का दुर्लभ संगम पेश करता है।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/DB1U_swAERc?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/DB1U_swAERc/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="Jawai Dam, कब, कैसे, किसने, जवाई बांध के निर्माण की ऐतिहासिक कहानी, क्षेत्रफल, लम्बाई, चौड़ाई, गेट" width="1250">
बंजर‐पहाड़ियों के बीच पानी की जीवनधारा
1950 के दशक में बनी यह बाँध परियोजना लूणी बेसिन के लिए जीवनरेखा साबित हुई। 62 किमी² से अधिक जलग्रहण वाला यह रिज़रवायर न सिर्फ़ आसपास के खेतों व गाँवों को सींचता है बल्कि कई जंगली प्रजातियों का आश्रय भी बन गया है। सुबह और शाम के धुंधलके में बाँध का नीला दर्पण पास की ग्रेनाइट चट्टानों को दहकते केसरिया रंगों में रंग देता है—फ़ोटोग्राफ़रों के लिए यह किसी प्राकृतिक स्टूडियो से कम नहीं।

भारत की अनोखी “ओपन लेपर्ड सफारी”
जवाई की सबसे बड़ी सनसनी इसकी लेपर्ड सफारी है। करीब 70 से ज़्यादा तेंदुओं का दस्तावेज़ी रिकॉर्ड इस छोटे से क्षेत्र को देश की सबसे ऊँची लेपर्ड डेंसिटी वाले इलाक़ों में रखता है। चौंकाने वाली बात यह कि यहाँ बाड़‑तार या गेटेड नेशनल पार्क जैसी कोई सीमा नहीं—आप खुली 4x4 जीप में सीधे चट्टानी ढलानों पर चढ़ते हैं और गुफ़ाओं के मुहानों पर आराम फ़रमाते तेंदुए देखते हैं।

इंसानों से बिना टकराव, जानवरों के साथ सहजीवन
स्थानीय राबड़ी चरवाहा समुदाय ने पीढ़ियों से तेंदुओं को “पहाड़ों के देवता” मानकर सम्मान दिया है। यही वजह है कि अब तक मानव‑वन्यजीव संघर्ष की कोई गंभीर घटना दर्ज नहीं हुई। राजस्थान वन विभाग ने 2010 में 19.8 किमी² क्षेत्र को ‘जवाई बांध लेपर्ड कंज़र्वेशन रिज़र्व’ घोषित कर मानवीय बस्तियों और वन्यजीवों की इस अनोखी सहजीव व्यवस्था को कानूनी सुरक्षा दी।

सफारी का रोमांच: कब, कैसे और कितने बजे
सफारी दिन में दो बार—भोर की ठिठुरती हवा और शाम के सुनहरे आलोक में—चलती है। हर ड्राइव लगभग ढाई‑तीन घंटे की होती है और प्रशिक्षित ट्रैकर पहाड़ियों की उन गुफ़ाओं तक ले जाते हैं जहाँ तेंदुए दिन में सुस्ताते हैं। ट्रैकर्स ऊँचाई पर रुककर दूरबीन से ‘रोमिंग मेल’ या ‘मदर विथ किटन’ की पैटर्न पहचानते हैं। यही खुलापन सफारी को रणथंभौर या सरिस्का से अलग बनाता है, जहाँ ज़्यादातर गतिविधि जिप्सी ट्रैक पर सीमित रहती है।

सिर्फ़ तेंदुआ ही नहीं—पक्षी, मगर और नीलगाय भी
बाँध का विस्तृत जलागार सरस क्रेन, डेमोइसेल क्रेन और बार‑हेडेड गीज़ जैसे प्रवासी पक्षियों की सर्दियों की शरणस्थली है। किनारों पर मगरमच्छ धूप सेंकते नज़र आते हैं, तो झाड़ियों में पटेरा बिल्ली व धारीदार लकड़बग्घा भी दिख सकता है। यह विविधता Jawai को वाइल्डलाइफ़ फ़ोटोग्राफ़ी का अपग्रेडेड ‘वन‑स्टॉप डेस्टिनेशन’ बनाती है।

सुनहरी सांझ—सनसेट पॉइंट की मोहिनी
दोपहर की सफारी के बाद ज़्यादातर जीपें सीधी एक ग्रेनाइट रिम पर रुकती हैं, जिसे स्थानीय गाइड ‘सनसेट पॉइंट’ कहते हैं। सूरज जैसे‑जैसे डूबता है, पानी लाल और बैंगनी परतों में रंग बदलता है, और दूर‑दूर तक पसरा नीरव जंगल हल्की हवा में गूँजता‑सा लगता है। कई कैम्प निजी “सनसेट हाई‑टी” या “डिनर अंडर द स्टार्स” पैकेज भी ऑफ़र करते हैं।

सामुदायिक संरक्षण और इको‑टूरिज़्म मॉडल
हाल के वर्षों में राज्य सरकार और निजी कैम्पों ने ‘कम्युनिटी‑बेस्ट कंज़र्वेशन’ अपनाया है। स्थानीय युवाओं को ट्रैकर‑गाइड की ट्रेनिंग दी गई है, जिससे उन्हें वैकल्पिक आय मिलती है और शिकार या चिरान जैसी परंपराएँ स्वाभाविक रूप से घट रही हैं। कुछ कैम्प मुनाफ़े का हिस्सा स्कूलों, जल‑संरक्षण और जंगल निगरानी पर खर्च करते हैं।

यात्रा की योजना कैसे बनाएं
जवाई सड़क मार्ग से उदयपुर (150 किमी), जोधपुर (110 किमी) और अहमदाबाद (300 किमी) से अच्छी तरह जुड़ा है। नज़दीकी रेलवे स्टेशन फ़ालना महज़ 35 किमी दूर है। अक्टूबर‑मार्च का मौसम सबसे सुहावना है, पर मॉनसून के बाद हरी चादर और जलप्रपात नज़ारों में चार‑चाँद लगा देते हैं। ठहरने के लिए लक्ज़री टेंटेड कैंप से लेकर बजट होमस्टे तक विकल्प मौजूद हैं; अग्रिम बुकिंग ज़रूरी है क्योंकि सफारी स्लॉट सीमित रहते हैं।