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Jainendra Kumar Death Anniversary प्रसिद्व कथाकार और उपन्यासकार जैनेन्द्र कुमार की पुण्यतिथि पर जानें इनका जीवन परिचय

 

साहित्य न्यूज डेस्क !!! जैनेन्द्र कुमार हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कथाकार, उपन्यासकार और निबंधकार थे। उन्हें हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में पहचाना जाता है। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्य स्थिति में सूक्ष्म संकेतों के निहितार्थ की खोज करके उन्हें बड़ी कुशलता से चित्रित करते हैं। इस संयोजन से उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं।

जीवन परिचय

2 जनवरी, 1905 को अलीगढ़ में जन्मे जैनेंद्र ने बचपन से ही एक अलग जीवन जीया। उनके चाचा ने हस्तिनापुर में एक गुरुकुल की स्थापना की थी, जहाँ उन्होंने भी अध्ययन किया था। उन्होंने दो साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था। जैनेन्द्र तो बाद में बने, आपका मूल नाम 'आनन्दी लाल' था। उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई। 1921 में पढ़ाई छोड़ दी और असहयोग आंदोलन में शामिल हो गये। 1923 में राजनीतिक संवाददाता बने। ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। जाने के कुछ समय बाद ही लिखना शुरू कर दिया।[1]

साहित्यिक परिचय

'फाँसी' उनका पहला कहानी संग्रह था, जिसने उन्हें एक प्रसिद्ध कहानीकार बना दिया। 1929 में उन्हें उपन्यास 'परख' से पहचान मिली। 'सुनीता' 1935 में प्रकाशित हुई। 1937 में 'त्यागपत्र' और 1939 में 'कल्याणी' का प्रकाशन हुआ। 1929 में पहला कहानी संग्रह 'फांसी' प्रकाशित हुआ। इसके बाद 1930 में 'वातायन', 1933 में 'नीलम देश की राजकन्या', 1934 में 'एक रात', 1935 में 'दो चिड़ियाँ' और 1942 में 'पाजेब' का प्रकाशन हुआ। अब 'जैनेन्द्र की कहानियाँ' के सात भाग उपलब्ध हैं। उनके अन्य महत्वपूर्ण उपन्यास हैं 'विवर्त', 'सुखदा', 'व्यथित', 'जयवर्धन' और 'दशार्क'। 'प्रस्तुत प्रश्न', 'जड़ की बात', 'पूर्वोदय', 'साहित्य का श्रेय और पूर्व', 'मंथन', 'विचार-विचार', 'कार्य और परिवार', 'ये और वे' उनके निबंध संग्रह हैं। टॉल्स्टॉय की रचनाओं के उनके अनुवाद उल्लेखनीय हैं। प्रश्नोत्तरी शैली में जैनेन्द्र को समझने के लिए 'समय और हम' सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है।