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Mother Teresa death anniversary आखिर क्यों मदर टेरेसा का चमत्कार कही जाती हैं ये दो घटनाएं, वीडियो में देखें वो भारत ही क्यों आयीं थीं ?

 

इतिहास न्यूज डेस्क !!! मदर टेरेसा (अंग्रेज़ी: Mother Teresa, जन्म- 26 अगस्त, 1910, यूगोस्लाविया; मृत्यु- 5 सितंबर, 1997) रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने सन 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। उन्होंने 1950 में कोलकाता में 'मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी' की स्थापना की। 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की मदद की और साथ ही 'मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी' के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।

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मदर टेरेसा ने जिस आत्मीयता से भारत के दीन-दुखियों की सेवा की, उसके लिए देश सदैव उनका ऋणी रहेगा। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम एग्नेस गोनक्शा बोजाक्शिहउ था, जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा 'कलकत्ता की संत टेरेसा' का नाम दिया गया था।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को यूगोस्लाविया में हुआ। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू था जो एक साधारण व्यवसायी थे। एक रोमन कैथोलिक संगठन की वे सक्रिय सदस्य थीं और 12 वर्ष की अल्पायु में ही उनके हृदय में विराट करुणा का बीज अंकुरित हो उठा था। मदर टेरेसा का असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। अगनेस के पिता उनके बचपन में ही मर गए, बाद में उनका लालन-पालन उनकी माता ने किया। पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं और उनके जन्म के समय उनकी बड़ी बहन आच्च की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी, बाकी दो बच्चे बचपन में ही गुजर गए थे। गोंझा ए सुन्दर जीवंत, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढ़ना, गीत गाना वह विशेष पसंद करती थीं। वह और उनकी बहन आच्च गिरजाघर में प्रार्थना की मुख्य गायिका थीं। गोंझा को एक नया नाम ‘सिस्टर टेरेसा’ दिया गया जो इस बात का संकेत था कि वह एक नया जीवन शुरू करने जा रही हैं। यह नया जीवन एक नए देश में जोकि उनके परिवार से काफ़ी दूर था, सहज नहीं था लेकिन सिस्टर टेरेसा ने बड़ी शांति का अनुभव किया।[1]

सिस्टर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से एक जहाज में बैठकर 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं। वह बहुत ही अच्छी अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उन्हें बहुत प्यार करते थे। वर्ष 1944 में वह सेंट मैरी स्कूल की प्रधानाचार्या बन गईं। मदर टेरेसा ने आवश्यक नर्सिग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह ग़रीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहीं। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहमपट्टी की और उनको दवाइयां दीं। सन् 1949 में मदर टेरेसा ने ग़रीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया।[1]

मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व ग़रीबों की स्वयं सेवा करती थीं। जिन्हें समाज ने बाहर निकाल दिया हो, ऐसे लोगों पर इस महिला ने अपनी ममता व प्रेम लुटाकर सेवा भावना का परिचय दिया।[1]

मदर टेरेसा मात्र अठारह वर्ष की उम्र में में दीक्षा लेकर वे सिस्टर टेरेसा बनी थीं। इस दौरान 1948 में उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और तत्पश्चात् ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी निष्फल नहीं होता, यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई। मदर टेरेसा की मिशनरीज संस्था (Mother Teresa missionaries of charity) ने 1996 तक क़रीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे क़रीबन पांच लाख लोगों की भूख मिटाए जाने लगी।[1]