आखिर हर साल क्यों मनाया जाता है ‘गुड फ्राइडे’, यहां जानिए इस दिन का असली मतलब?
ईसाई धर्म का पवित्र दिन गुड फ्राइडे 18 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन ईसाई लोग प्रभु ईसा मसीह को याद करते हैं तथा मौन रखकर, ध्यान लगाकर और उपवास रखकर उनके प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं। प्रभु यीशु ने लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया, इस वजह से मानवता के कुछ दुश्मनों ने प्रभु यीशु के खिलाफ अफवाहें फैलाना शुरू कर दिया। इन आरोपों के कारण उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक बाइबल के अनुसार, यीशु को लगभग 6 घंटे तक शरीर से चिपका कर रखा गया था। इसके बाद उसे फांसी दे दी गयी। ईसाई धर्म के अनुसार, यीशु के इस बलिदान ने मानवता को नया जीवन दिया।
परमेश्वर से पापों की क्षमा मांगें
गुड फ्राइडे ईसा मसीह के बलिदान का स्मरण करता है। इसके साथ ही प्रभु यीशु के बताए मार्ग पर चलने की शपथ ली जाती है। इस दिन लोग शोक व्यक्त करने और प्रभु यीशु के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए काले कपड़े पहनते हैं। उनके गीत गाए जाते हैं और उपदेश भी दिए जाते हैं। इसके साथ ही लोग ईसा मसीह से अपनी गलतियों के लिए क्षमा भी मांगते हैं। कुछ लोग इस दिन कुछ भी खाए बिना उपवास रखते हैं।
इसे गुड फ्राइडे क्यों कहा जाता है?
गुड फ्राइडे को पवित्र दिवस, ब्लैक फ्राइडे और ग्रेट फ्राइडे के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यहाँ अच्छे का मतलब अच्छा नहीं है। पुरानी अंग्रेज़ी में इसका मतलब पवित्र होता है। इसका अर्थ है पवित्र शुक्रवार। वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस दिन को 'गॉड्स फ्राइडे' यानी 'ईश्वर का शुक्रवार' कहा जाता था, धीरे-धीरे यह 'ईश्वर' से बदलकर 'अच्छा' हो गया।
मानवता के लिए दिया गया बलिदान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुड फ्राइडे के दिन ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। उन्हें झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया, कोड़े मारे गए और फिर सूली पर चढ़ा दिया गया। ईसा मसीह को क्रूस पर चढ़ाए जाने की घटना को 'क्रूसीफिकेशन' कहा जाता है, और यह ईसाई धर्म के लिए एक बहुत ही भावनात्मक और गहन धार्मिक घटना है। ईसाईयों का मानना है कि ईसा मसीह ने मानवता के पापों का प्रायश्चित करने के लिए अपना बलिदान दिया था।
भगवान लौट आये थे
गुड फ्राइडे सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि त्याग, करुणा, क्षमा और प्रेम का प्रतीक है। यह दिन याद दिलाता है कि सच्चा प्यार निस्वार्थ होता है और अच्छाई के लिए प्रयास करना आवश्यक है।
(भले ही इसका मतलब दर्द और बलिदान हो।)
यीशु का बलिदान यह सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और प्रेम की ही विजय होती है। यह आशा की किरण है जिसे हम ईस्टर रविवार को देखते हैं, जब यह माना जाता है कि ईसा मसीह पुनर्जीवित हो गये थे।