बांग्लादेश में लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों को लेकर शुभेंदु अधिकारी का बयान, 1971 जैसी स्थिति को दोहराना चाहिए
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने गुरुवार को बांग्लादेश की मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के “सही सोच वाले नागरिकों” को वहां वास्तविक लोकतंत्र स्थापित करने और अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए 1971 जैसी स्थिति को दोहराने की जरूरत पड़ सकती है। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है।
शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि वर्ष 1971 में मुक्तिजोद्धाओं (मुक्ति योद्धाओं) ने पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष कर बांग्लादेश को आजादी दिलाई थी। उनका इशारा बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम की ओर था, जिसमें बड़े पैमाने पर जनआंदोलन और सशस्त्र संघर्ष के जरिए तत्कालीन पाकिस्तानी शासन को हटाया गया था। अधिकारी का कहना है कि मौजूदा हालात में भी बांग्लादेश के नागरिकों को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए एकजुट होकर निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है।
हालांकि, शुभेंदु अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया कि वह यह टिप्पणी एक भारतीय नागरिक के तौर पर कर रहे हैं, न कि बीजेपी नेता के रूप में। उन्होंने कहा कि उनका बयान किसी राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित नहीं है, बल्कि पड़ोसी देश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे कथित अत्याचार और लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण को लेकर उनकी व्यक्तिगत चिंता को दर्शाता है।
गौरतलब है कि बांग्लादेश में आगामी चुनावों से पहले हिंसा, राजनीतिक अस्थिरता और अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर हिंदुओं पर हमलों की खबरें सामने आ रही हैं। दीपू चंद्र दास और अमृत मंडल जैसे हिंदू युवकों की हत्या के मामलों ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। इन घटनाओं को लेकर भारत में भी चिंता और नाराजगी देखने को मिल रही है।
शुभेंदु अधिकारी का बयान ऐसे समय आया है, जब भारत सरकार पहले ही बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जता चुकी है। हालांकि, आधिकारिक स्तर पर भारत सरकार ने हमेशा यह रुख अपनाया है कि वह बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती, लेकिन मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर उम्मीद जरूर जताती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शुभेंदु अधिकारी का बयान भावनात्मक और ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसका कूटनीतिक असर भी हो सकता है। विपक्षी दलों ने इस बयान पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इस तरह की टिप्पणियों से भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है। वहीं, कुछ वर्गों का कहना है कि यह बयान पड़ोसी देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर बढ़ती चिंता को दर्शाता है।
बांग्लादेश की ओर से फिलहाल इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। वहां की सरकार पहले भी यह कहती रही है कि देश में सभी समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।