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जिस धान की खेती पांडवों ने की, वो आज भी यहां बिना बोए उगता है, फिर कहां हो जाता है गायब?

 

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के कण-कण में पौराणिक कहानियां छिपी हैं. यहां मदमहेश्वर के समीप स्थित पांडव सेरा है. मान्यता है कि महाभारत काल में वनवास के दौरान पांडवों ने इस घाटी में कुछ समय बिताया था और यहीं चावल की खेती की थी. आश्चर्य की बात यह है कि सदियों बीत जाने के बाद भी यहां धान की फसल बिना खुद उगती है और पकने के बाद रहस्यमय ढंग से पुनः मिट्टी में विलीन हो जाती है.

पांडव सेरा का धान सामान्य खेती से बिल्कुल अलग है. यहां न तो बीज बोए जाते हैं और न ही फसल काटी जाती है. हर वर्ष मानसून के साथ धान के पौधे अपने आप उगते हैं, समय आने पर पकते हैं और फिर धरती में समा जाते हैं. स्थानीय ग्रामीणों का विश्वास है कि यह पांडवों की तपस्या और दिव्य आशीर्वाद का प्रतीक है. यही कारण है कि इसे केवल फसल नहीं, बल्कि आस्था का स्वरूप माना जाता है.

धान को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं
यह अद्भुत घटना पांडव सेरा की पहचान बन चुकी है. देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक इस चमत्कारी धान को देखने आते हैं और कई लोग तो अपनी यात्रा का समय भी फसल के उगने के काल के अनुसार तय करते हैं. स्थानीय गाइड बताते हैं, यह सिर्फ चावल नहीं, बल्कि मिट्टी से उपजी आस्था है, और इसी वजह से इस घाटी को पवित्र भूमि माना जाता है.

क्या है कथा?
लोककथाओं के अनुसार, केदारनाथ में भगवान शिव की पीठ के दर्शन के बाद पांडव और द्रौपदी बद्रीनाथ की ओर प्रस्थान कर गए थे. इस यात्रा के दौरान उन्होंने मदमहेश्वर और पांडव सेरा में विश्राम किया. कहा जाता है कि यहीं उन्होंने अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया और जीवनयापन के लिए धान की खेती की. पांडवों की ओर से बनाई गई सिंचाई नहर आज भी घाटी में बहती है, जो उनके यहां ठहरने का मौन साक्ष्य मानी जाती है.

25 किलोमीटर लंबा ट्रेक
पांडव सेरा में पांडवों के शस्त्रों की पूजा आज भी की जाती है, जिससे इस स्थान की पवित्रता और बढ़ जाती है. पांडव सेरा तक पहुंचना आसान नहीं है. मदमहेश्वर से नंदी कुंड तक लगभग 25 किलोमीटर लंबा ट्रेक अल्पाइन घास के मैदानों, ग्लेशियरों और ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरता है. रास्ते में ब्रह्म कमल जैसे दुर्लभ फूल और हिमालय की बर्फीली चोटियों के मनोहारी दृश्य यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं. कई ट्रेकर्स के लिए, बिना किसान के उगती धान की फसल देखना ही इस यात्रा का सबसे बड़ा अनुभव होता है.

पांडव सेरा से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित नंदी कुंड एक पवित्र झील है, जहां स्नान करने से आत्मशुद्धि का विश्वास किया जाता है. पास स्थित देवी नंदा मंदिर में दर्शन-पूजन से मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है. इस प्रकार पांडव सेरा और नंदी कुंड का यह मार्ग न केवल एक कठिन ट्रेक है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और पूर्णता की खोज का पवित्र पथ भी है.