पंचायत चुनाव की तैयारियों में जुटी समाजवादी पार्टी, गांव-गांव भेजा जा रहा
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपनी रणनीतिक तैयारियों की शुरुआत कर दी है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के हस्ताक्षर वाला ‘पीडीए पर्चा’ गांव-गांव भेजा जा रहा है, जिसमें पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग (PDA) से जुड़ाव और समाजवादी सरकारों की उपलब्धियों को विस्तार से दर्शाया गया है।
इस अभियान का उद्देश्य बूथ स्तर पर पार्टी की पकड़ मजबूत करना और पीडीए वर्ग के मतदाताओं में विश्वास कायम करना है। समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बताया कि वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के प्रति अन्याय और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी अपने परंपरागत समर्थन वर्ग के साथ खड़ी है और उनके अधिकारों के लिए संघर्षरत है।
राजेंद्र चौधरी ने बताया कि पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए गए हैं कि वे हर बूथ तक पीडीए पर्चा पहुंचाएं और इसके माध्यम से समाजवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करें। इस पर्चे में सपा सरकारों की ओर से शुरू की गई जनकल्याणकारी योजनाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित कार्यों का उल्लेख किया गया है।
इस अभियान के तहत सभी जिला और शहर इकाइयों को 'चौपालों' के आयोजन के निर्देश दिए गए हैं। इन चौपालों में पीडीए पर्चा को केंद्र में रखकर चर्चा की जाएगी और ग्रामीणों को सपा की नीतियों व आगामी योजनाओं से अवगत कराया जाएगा। जानकारी के अनुसार, कई जिलों में यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों से संपर्क साध रहे हैं।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, इस अभियान को आगामी 2027 विधानसभा चुनावों की नींव के रूप में भी देखा जा रहा है। पंचायत चुनावों के जरिए सपा स्थानीय स्तर पर न केवल संगठन को सक्रिय कर रही है, बल्कि आने वाले समय के लिए जनाधार बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि समाजवादी पार्टी की यह रणनीति सीधे तौर पर भाजपा के जातीय और सांस्कृतिक एजेंडे को चुनौती देने की कोशिश है। वहीं, इस पर्चे के जरिए पीडीए वर्ग को एकजुट करने का प्रयास आगामी चुनावों में सपा के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।
फिलहाल, समाजवादी पार्टी का यह अभियान राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर रहा है और पंचायत चुनाव से पहले ही राजनीतिक तापमान में इज़ाफा होता नजर आ रहा है।