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साध्वी प्राची के चांद-सितारे वाली राखी बयान पर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी की तीखी प्रतिक्रिया

 

एक तरफ जहां राखी के त्योहार पर भाई-बहन के रिश्तों को मजबूत करने की बातें हो रही थीं, वहीं साध्वी प्राची के चांद और सितारे वाली राखी से संबंधित बयान ने राजनीतिक और धार्मिक हलकों में विवाद खड़ा कर दिया है। साध्वी प्राची ने एक बयान में कहा था कि वे इस बार राखी पर चांद और सितारे को बांधने के खिलाफ हैं, क्योंकि उनका मानना है कि ये प्रतीक इस्लाम से जुड़े हुए हैं। उनका यह बयान न केवल विवादित हुआ, बल्कि धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे को प्रभावित करने वाला भी माना जा रहा है।

साध्वी के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, "यह बयान नफरत फैलाने वाला है। साध्वी प्राची बार-बार 'जिहाद' शब्द का इस्तेमाल करती हैं, जिससे ऐसा लगता है कि उन्हें इस शब्द से प्रेम हो गया है।" मौलाना रजवी ने साध्वी से आग्रह किया कि वे इस तरह के भड़काऊ बयानों से बचें और समाज में शांति और सद्भावना को बढ़ावा देने का काम करें।

मौलाना रजवी ने यह भी कहा कि भारत एक बहुलतावादी देश है, जहां विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग एक साथ रहते हैं। ऐसे में किसी एक धर्म के प्रतीक को लेकर विवाद खड़ा करना किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश के लिए ठीक नहीं है। उनका कहना था कि साध्वी का यह बयान धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है और समाज में नफरत की दीवारें खड़ी करने का काम कर रहा है।

यहां तक कि कुछ समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषकों ने भी साध्वी प्राची के बयान को सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि यह बयान केवल एक समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि समग्र भारतीय समाज को बांटने की कोशिश हो सकती है। उनका मानना है कि इस प्रकार के बयान से देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है, जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए खतरनाक हो सकता है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि साध्वी प्राची का यह बयान आगामी चुनावों में भी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है, क्योंकि देश में बढ़ते हुए सांप्रदायिक मतभेदों को लेकर राजनीतिक दलों के बीच तकरार भी बढ़ी है। वहीं, इस तरह के बयानों से राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करने वाले नेता भी सक्रिय हो सकते हैं।

इधर, साध्वी प्राची ने अपनी टिप्पणी पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, और उनके समर्थक भी उनके बयान का बचाव कर रहे हैं। हालांकि, एक बात तो साफ है कि उनका यह बयान न केवल विवादों में घिर गया है, बल्कि देश की सांप्रदायिक सद्भाव को चुनौती भी दे रहा है।

इस पूरे मामले ने फिर से यह सवाल उठाया है कि क्या हमें अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान करना चाहिए, या फिर व्यक्तिगत विचारों को राजनीतिक लाभ के लिए भड़काऊ बनाना चाहिए।