मिथिला की अनोखी परंपरा, नवविवाहितों का पवित्र पर्व ‘मधुश्रवणी-पंचमी’, जानें पूजा का महत्व
बिहार के मिथिला क्षेत्र की संस्कृति अपने अनोखे त्योहारों और परंपराओं के लिए जानी जाती है। इन्हीं में से एक है ‘मधुश्रवणी-पंचमी’, जो नवविवाहित जोड़ों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह पर्व सावन महीने की पंचमी तिथि से शुरू होकर 15 दिनों तक चलता है, और इस दौरान नवविवाहित महिलाएं विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।
🌿 मधुश्रवणी-पंचमी क्या है?
यह पर्व मुख्य रूप से नवविवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो शादी के बाद पहले सावन में ससुराल में रहकर इस पूजा को करती हैं। मधुश्रवणी का अर्थ होता है "मीठी बातें सुनना", और इस पर्व के दौरान महिलाएं लोक कथाएं, धार्मिक प्रसंग और देवी-देवताओं से जुड़ी कहानियां सुनती हैं।
🐍 सांप को दूध पिलाने और बासी फूल की पूजा
इस पर्व की सबसे खास बात यह है कि इसमें सांप (नाग देवता) की पूजा होती है। सांप को दूध चढ़ाने की परंपरा भी इसी पर्व से जुड़ी है, जिसे सांपों से सुरक्षा और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। साथ ही पूजा में बासी फूल और पत्तों का उपयोग किया जाता है, जो दर्शाता है कि देवी-देवता बासी अर्पण भी स्वीकार कर लेते हैं यदि वह श्रद्धा से किया गया हो।
🪔 पूजा का महत्व
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वैवाहिक जीवन में समृद्धि और सौहार्द बनाए रखने के लिए यह पूजा की जाती है।
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यह पर्व पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन की कामना के लिए भी विशेष माना जाता है।
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इसमें प्राकृतिक तत्वों और नाग देवता की पूजा कर प्रकृति के प्रति सम्मान और संतुलन का संदेश दिया जाता है।
📖 लोककथाएं और संस्कार
इन 15 दिनों के दौरान बुजुर्ग महिलाएं नवविवाहित बहुओं को लोक परंपराएं, रीति-रिवाज और जीवन मूल्य सिखाती हैं। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जुड़ाव का भी प्रतीक है