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काशी विद्वत परिषद ने जारी की नई 'हिंदू आचार संहिता', दहेज और फिजूलखर्ची पर सख्त रोक

 

सनातन धर्म के संरक्षण और सामाजिक सुधार के उद्देश्य से काशी विद्वत परिषद ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए नई हिंदू आचार संहिता जारी की है। 400 पन्नों के इस विस्तृत दस्तावेज को देशभर के प्रतिष्ठित विद्वानों, चारों पीठों के शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों और संतों के साथ लंबे विमर्श के बाद तैयार किया गया है।

नई संहिता का उद्देश्य हिंदू परंपराओं को समयानुकूल बनाना, सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करना और वैदिक रीति-रिवाजों को पुनर्जीवित करना है। यह दस्तावेज खास तौर पर दहेज प्रथा, शादी-विवाह में फिजूलखर्ची और अनावश्यक आडंबर जैसी समस्याओं पर कठोर रुख अपनाता है।

दहेज प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध

आचार संहिता में स्पष्ट कहा गया है कि दहेज लेना या देना न केवल सामाजिक अपराध है, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी पाप है। परिषद ने देशभर के हिंदू परिवारों से अपील की है कि वे विवाह को सरल और पवित्र बनाएं, और दहेज जैसी कुरीति को पूरी तरह नकार दें।

फिजूलखर्ची पर नियंत्रण

विवाह और अन्य सामाजिक समारोहों में अनावश्यक खर्च को रोकने के लिए भी संहिता में दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि शादी जैसे पवित्र संस्कार को दिखावे और प्रतिस्पर्धा से मुक्त किया जाए। साधारण एवं सादगीपूर्ण आयोजन को ही श्रेष्ठ माना गया है।

वैदिक रीति से दिन में विवाह की सलाह

संहिता में यह भी उल्लेख किया गया है कि विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कारों का आयोजन रात्रि में न होकर दिन के समय वैदिक मंत्रों और शास्त्रोक्त विधियों के अनुसार किया जाना चाहिए। परिषद ने कहा कि रात के विवाह केवल परंपराओं के नाम पर किए जा रहे हैं, जो शास्त्रसम्मत नहीं हैं।

सनातन परंपराओं का संरक्षण और समाज में जागरूकता

काशी विद्वत परिषद का यह प्रयास केवल धार्मिक अनुशासन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य सामाजिक चेतना को भी जगाना है। परिषद ने कहा कि हिंदू समाज को अपने मूल सिद्धांतों की ओर लौटना होगा और सामाजिक बुराइयों को स्वयं त्यागना होगा।