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होम्योपैथी निदेशक प्रो. एके वर्मा निलंबन मामला: मेडिकल स्टोर लाइसेंस की जांच शुरू, चार्ज अब तक अधर में

 

उत्तर प्रदेश होम्योपैथी विभाग के निदेशक प्रो. एके वर्मा के निलंबन के बाद अब उनके कार्यकाल में जारी किए गए मेडिकल स्टोर लाइसेंसों की विस्तृत जांच की तैयारी शुरू हो गई है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, इन लाइसेंसों को लेकर कई अनियमितताओं की आशंका जताई जा रही है, जिसे ध्यान में रखते हुए संबंधित पत्रावलियों को एकत्र किया जा रहा है।

प्रो. वर्मा को हाल ही में गंभीर प्रशासनिक लापरवाही और नियमों के उल्लंघन के आरोपों के चलते निलंबित किया गया था। उनके कार्यकाल के दौरान जिन मेडिकल स्टोरों को लाइसेंस दिए गए, उनमें कुछ मामलों में दस्तावेजों की जांच, पात्रता की पुष्टि और नियमानुसार प्रक्रियाओं के पालन को लेकर सवाल उठे हैं। अब विभाग की टीम इन सभी मामलों की गहराई से छानबीन करेगी।

विभागीय अधिकारियों ने बताया कि पत्रावलियों की समीक्षा के बाद संदिग्ध लाइसेंसों की सूची बनाई जाएगी और आवश्यकता पड़ने पर लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई भी की जा सकती है। इसके अलावा यदि किसी कर्मचारी या अधिकारी की भूमिका संदिग्ध पाई जाती है, तो उनके खिलाफ भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

इधर, शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन भी निदेशक पद का चार्ज किसी वरिष्ठ चिकित्साधिकारी को नहीं सौंपा जा सका है। इससे विभागीय कामकाज पर असर पड़ रहा है। कई महत्वपूर्ण फाइलें और प्रशासनिक निर्णय अटके हुए हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि शासन स्तर पर नए निदेशक की नियुक्ति को लेकर विचार चल रहा है, लेकिन अंतिम फैसला अभी नहीं हुआ है।

चिकित्सा शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि "नए निदेशक के चयन में पारदर्शिता और अनुभव को प्राथमिकता दी जाएगी। विभाग यह सुनिश्चित करना चाहता है कि आगे किसी तरह की अनियमितता न हो।"

गौरतलब है कि होम्योपैथी विभाग को लेकर हाल के वर्षों में कई बार भ्रष्टाचार और लापरवाही के आरोप लगते रहे हैं। प्रो. वर्मा के निलंबन के बाद एक बार फिर विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

फिलहाल, विभाग इस पूरे प्रकरण को लेकर सतर्क हो गया है और सभी पुराने रिकॉर्ड्स को खंगाला जा रहा है। शासन की मंशा है कि जांच में कोई ढील न बरती जाए और यदि किसी भी स्तर पर गड़बड़ी सामने आती है तो दोषियों को बख्शा न जाए।

यह मामला न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती है, बल्कि होम्योपैथी चिकित्सा की विश्वसनीयता को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है।

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