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मेंटल डिजीज को दूर करने में बॉडी फैट से मिलेगी मदद, IIT प्रयागराज की नई स्टडी में हुआ खुलासा

 

मोटापा या शरीर की चर्बी को बीमारियों का मुख्य कारण माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मोटापा दिमागी बीमारियों को भी ठीक कर सकता है। जी हाँ, हाल ही में आईआईटी प्रयागराज में एक नया अध्ययन हुआ है, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि कैसे हमारे शरीर की चर्बी दिमागी बीमारियों और रीढ़ की हड्डी की चोटों के इलाज में मदद कर सकती है। आपको बता दें कि अब तक ऐसी बीमारियाँ धीरे-धीरे मरीज़ की याददाश्त, सोचने-समझने की क्षमता और शरीर के संतुलन को ख़त्म करने लगती थीं। लेकिन अब तक इसका कोई स्थायी इलाज नहीं था। डॉक्टर सिर्फ़ लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए दवाइयाँ देते थे। ऐसे में यह शोध काफ़ी फ़ायदेमंद साबित हो सकता है।

क्या है यह शोध?

आईआईटी प्रयागराज के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में, आईआईटी के एप्लाइड साइंसेज़ विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संगीता सिंह और उनकी छात्रा आयुषी ने इस शोध को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। उन्होंने पाया है कि हमारे शरीर की चर्बी में स्टेम सेल होते हैं, जो ख़ास होते हैं। इन्हीं कोशिकाओं की मदद से इलाज किया जाएगा।

कैसे होगा इलाज?

दरअसल, इस शोध के अनुसार, शरीर की चर्बी का इस्तेमाल करके टूटी हुई मस्तिष्क कोशिकाओं को फिर से बनाया जा सकता है। इस तकनीक में, स्टेम कोशिकाओं को वसा से निकालकर एक विशेष प्रकार के द्रव में रखा जाएगा। इसमें दो प्रोटीन होते हैं, जो स्टेम कोशिकाओं को मज़बूत बनाते हैं और मस्तिष्क के लिए तैयार करते हैं। इन प्रोटीनों को कोशिकाओं तक पहुँचाया जाएगा, जिससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़े। ये दो प्रोटीन हैं - एनजीएफ (नर्व ग्रोथ फैक्टर) और बीडीएनएफ (ब्रेन डिराइव्ड न्यूरोट्रॉफिक फैक्टर), जो मिलकर न्यूरॉन्स का विकास करते हैं। हालाँकि यह एक सफल उपचार है, लेकिन इसमें एक समस्या है, जो बाधा बन रही है। वह यह कि यह प्रोटीन बहुत जल्दी नष्ट हो जाता है।

चिटोसन नैनोकैरियर क्या है?

चिटोसन केकड़े के खोल से बना एक प्राकृतिक पदार्थ है। इसे नैनोकणों में परिवर्तित करके, इसमें दोनों प्रकार के प्रोटीन भरे जाते हैं। ये नैनो कोशिकाएँ मस्तिष्क में प्रोटीन भरने का काम करती हैं।

यह शोध किसके लिए लाभदायक है?

अल्जाइमर रोगियों के लिए लाभकारी।

पार्किंसंस का इलाज करेगा।

मस्तिष्क की चोट और लकवा के इलाज में सफल।

परीक्षण कब किया जाएगा?

यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जर्नल बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्स में प्रकाशित हुई है। डॉ. संगीता का कहना है कि पहले चरण का ट्रायल शुरू हो चुका है। अब दूसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल किया जाएगा। इसमें मरीज़ की सोच-समझ, कैल्शियम इमेजिंग और पैच क्लैंप जैसे परीक्षण भी शामिल होंगे। इसके साथ ही, मरीज़ों की बीमारी के अनुसार उनके लक्षणों की भी जाँच की जाएगी।