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तमिलनाडु का वो अनोखा मंदिर जहां भक्त भगवान को चढ़ाते हैं जूते-चप्पल, वीडियो में मन्दिर की सैंकड़ों साल पुरानी रहस्य जान चौंक जाएंगे आप 

 

तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में स्थित सोरिमुथु अय्यनार मंदिर न सिर्फ अपनी आध्यात्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की एक अनोखी परंपरा इसे देश के अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग बनाती है। जहां आमतौर पर मंदिरों में लोग नंगे पांव जाते हैं और चप्पल-जूते बाहर उतारकर श्रद्धा जताते हैं, वहीं इस मंदिर में देवताओं को चप्पल और जूते चढ़ाए जाते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और आज भी श्रद्धालु बड़ी आस्था के साथ इस प्रथा को निभाते हैं।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/ZY6wA6DTnYI?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/ZY6wA6DTnYI/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="तमिलनाडु का वो अनोखा मंदिर जहां देवताओं के सम्मान में चढ़ाए जाते हैं जूते-चप्पल | Sorimuthu Ayyanar" width="1250">

कौन हैं सोरिमुथु अय्यनार?

सोरिमुथु अय्यनार एक ग्राम देवता माने जाते हैं जिन्हें तमिलनाडु और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। इन्हें घोड़े पर सवार, योद्धा रूप में दर्शाया जाता है। मान्यता है कि वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए लगातार यात्रा करते हैं, और इसलिए उन्हें जूते-चप्पलों की ज़रूरत होती है।

जूते-चप्पल चढ़ाने की अनोखी मान्यता

भक्तों का मानना है कि अय्यनार भगवान अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए दिन-रात जंगलों और पथरीले रास्तों पर गश्त करते हैं। इस कठिन यात्रा में उनके पैर न घिसें या उन्हें चोट न पहुंचे, इसके लिए भक्त उन्हें जूते या चप्पल अर्पित करते हैं। यह न केवल सम्मान का प्रतीक है, बल्कि भगवान को सुरक्षा देने की भावना भी दर्शाता है।श्रद्धालु आमतौर पर नए, चमड़े या रबर से बने मजबूत जूते या चप्पल भगवान को भेंट करते हैं। कुछ भक्तों का यह भी विश्वास है कि यदि वे भगवान को चप्पल चढ़ाते हैं, तो उनके घर में भी समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है।

दक्षिण भारत की लोक परंपरा का हिस्सा

तमिलनाडु और केरल के ग्रामीण इलाकों में इस प्रकार के लोक देवताओं की पूजा आम बात है। अय्यनार की मूर्तियां अक्सर मंदिर के बाहर खुले मैदान में या गांव की सीमाओं पर स्थापित की जाती हैं, ताकि वे पूरे क्षेत्र की रक्षा कर सकें। घोड़े, तलवार और रक्षक के रूप में उनकी छवि इन्हें एक योद्धा देवता का प्रतीक बनाती है।

पर्यटन और आस्था दोनों का केंद्र

सोरिमुथु अय्यनार मंदिर, न केवल स्थानीय भक्तों बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यहां हर वर्ष विशेष पूजा और उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान को चप्पलें अर्पित करते हैं। यह दृश्य पर्यटकों के लिए चौंकाने वाला जरूर होता है, लेकिन जब वे इसकी भावना और मान्यता को समझते हैं, तो श्रद्धा और सम्मान और गहरा हो जाता है।