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इस डॉक्यूमेंट्री में देखे कहानी बीसलपुर की! जाने भीष्म पितामह की तपस्थली से राजस्थान की जलजीवन रेखा तक का अद्भुत सफर

 

राजस्थान, जो अपने रेगिस्तान और पानी की कमी के लिए जाना जाता है, वहां बीसलपुर बांध एक जीवनदायिनी धरोहर के रूप में उभरा है। यह केवल एक जलाशय या परियोजना नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की प्यास बुझाने वाला वह स्त्रोत है जिसकी नींव इतिहास और आस्था के अनोखे संगम पर रखी गई है।बीसलपुर बांध का निर्माण 20वीं सदी के उत्तरार्ध में शुरू हुआ, लेकिन इसकी योजना और पृष्ठभूमि कहीं अधिक पुरानी और गूढ़ है। यह बांध टोंक जिले में बनास नदी पर स्थित है, और आज जयपुर, अजमेर, टोंक, किशनगढ़ जैसे शहरों को पीने का पानी और सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराता है। पर यह महज एक तकनीकी परियोजना नहीं है, इसके पीछे छुपी हैं कुछ पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियाँ, जो इसे और भी विशिष्ट बना देती हैं।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/vWjK5mJUYgU?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/vWjK5mJUYgU/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="Bisalpur Dam Rajasthan, कैसे हुआ बीसलपुर बांध का निर्माण, क्षेत्रफल, प्रमुख नदियां, पाइपलाइन, क्षमता" width="1250">
पौराणिक मान्यता: भीष्म पितामह से जुड़ा है ‘बीसलपुर’ नाम
कहा जाता है कि महाभारत काल में जब भीष्म पितामह गंगाजल की खोज में निकले, तो उन्होंने इस क्षेत्र में तपस्या की थी। उस समय इस क्षेत्र का नाम "भीष्मपुर" था, जो समय के साथ "बीसलपुर" कहलाने लगा। स्थानीय ग्रामीणों की मान्यता है कि भीष्म पितामह ने यहां जल संरक्षण के महत्व को समझाते हुए तालाब निर्माण का निर्देश दिया था। यहीं से शुरू होती है बीसलपुर क्षेत्र की जल परंपरा, जो सदियों से चली आ रही है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: राजाओं के प्रयासों की गवाही देता है यह क्षेत्र
इतिहासकारों के अनुसार, बीसलपुर क्षेत्र में कई छोटे-बड़े जलस्रोत और बावड़ियाँ पहले से ही विद्यमान थीं, जिन्हें चौहान वंश और कछवाहा राजाओं ने विकसित किया था। खासकर अकाल और जल संकट से जूझते इस क्षेत्र में पानी को सहेजने की परंपरा सैकड़ों वर्षों से रही है। मुगलकाल और ब्रिटिश काल में भी यहां जल स्रोतों की मरम्मत और विस्तार होते रहे। यह क्षेत्र सदियों से जल-संस्कृति का केंद्र रहा है।

आधुनिक बीसलपुर परियोजना: निर्माण की गाथा
1970 के दशक में जब राजस्थान में जल संकट बढ़ने लगा, तो सरकार ने बनास नदी पर एक बड़ा बांध बनाने की योजना बनाई। इस परियोजना का निर्माण कार्य 1985 में शुरू हुआ और 1999 तक पूरा हो सका। इस दौरान हजारों ग्रामीणों को विस्थापित किया गया, लेकिन यह निर्णय राज्य की दीर्घकालिक जल आवश्यकता को ध्यान में रखकर लिया गया था।बीसलपुर बांध की कुल लंबाई लगभग 574 मीटर है और यह करीब 315.5 मिलियन क्यूबिक मीटर जल संग्रह करने में सक्षम है। यह जयपुर, अजमेर, टोंक और अन्य जिलों के करोड़ों लोगों के लिए जल जीवन योजना का मुख्य स्रोत बन चुका है।

सिंचाई और पीने के पानी का मुख्य स्त्रोत
आज बीसलपुर बांध 21 लाख से ज्यादा लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराता है। साथ ही यह अजमेर और टोंक जिले में 50,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई में सहायक है। यह न केवल ग्रामीण किसानों की उपज बढ़ाने में सहायक बना है, बल्कि शहरी जल संकट को भी काफी हद तक नियंत्रित करने में सफल रहा है।

पानी की राजनीति और संघर्ष
बीसलपुर बांध केवल विकास का प्रतीक नहीं, बल्कि यह राजस्थान की जल राजनीति का केंद्र भी रहा है। कभी अजमेर और जयपुर के बीच जल वितरण को लेकर विवाद उठते हैं, तो कभी ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच संघर्ष होता है। इसके बावजूद, सरकारें लगातार इस परियोजना को सुदृढ़ करने के लिए पाइपलाइन विस्तार, जल शोधन संयंत्र और भूमिगत आपूर्ति नेटवर्क पर काम कर रही हैं।

पर्यटन और आस्था का केंद्र
बीसलपुर बांध का नीला पानी और हरियाली इसे पर्यटकों के लिए भी आकर्षक बनाते हैं। लोग यहां पिकनिक मनाने, नौका विहार करने और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने आते हैं। बांध के पास एक प्राचीन शिव मंदिर भी है, जहां सावन में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। यह धार्मिक और पर्यटन स्थल दोनों के रूप में उभर चुका है।