Jaipur गैटोर की आकर्षक छतरियां हैं राजा-महाराजाओं का समाधि स्थल
राजस्थान न्यूज़ डेस्क !!! जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर आखिरी शासक महाराजा माधोसिंह द्वितीय की समाधियां हैं. हिन्दू राजपूत स्थापत्य कला और पारंपरिक मुगल शैली के बेजोड़ संगम का प्रतीक ये छतरियां अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं. इतिहासकार देवेन्द्र कुमार भगत के अनुसार यहां दिवंगत राजाओं का दाहसंस्कार करने के बाद राजा की स्मृति स्वरूप ये समाधियां बनाई गई.सभी समाधियां सबंधित राजा महाराजा के व्यक्तित्व और उनकी पदवी को ध्यान में रखते हुए बनाई गई. गैटोर की छतरियां प्रमुख रूप से तीन चौकों में निर्मित हैं. यहां केन्द्र में 20 खंभों पर टिकी छतरी जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह की है. ताज मार्बल से बनी इस समाधि के पत्थरों पर की अद्भुद शिल्पकारी भी देखने को मिलती है. जिसका निर्माण उनके पुत्र ईश्वरी सिंह ने करवाया था. सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि, समाधि के चारों ओर युद्ध, शिकार, वीरता और संगीतप्रियता के शिल्प मूर्तमान हैं.
राजा मानसिंह होर्स पोलो के चैम्पियन थे. इसलिए उनकी छतरी में घोड़ों को भी उकेरा गया है. इसके अलावा यहां महाराजा माधोसिंह द्वितीय और उनके पुत्रों की भी समाधियां बनी हुई हैं. नाहरगढ़ पहाड़ियों की तलहटी में शांत और सुरम्य स्थल पर बनी गैटोर की छतरियों का अपना इतिहास रहा है. 18वीं सदी में जयपुर जैसे सुनियोजित और खूबसूरत शहर की कल्पना करने और उसे साकार रूप देने वाले कछवाहा वंश के राजाओं की दिवंगत आत्माओं का ठौर अगर कहीं है, तो वो है गैटोर. गैटोर की ये छतरियां जयपुर के राजा-महाराओं का समाधिस्थल है
.खबरों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि, एक विशाल छतरी भी है. राजपरिवार के तेरह राजकुमारों और एक राजकुमारी की महामारी से एक साथ हुई मौत के बाद ये छतरी उन सभी की स्मृति में बनाई गई. वहीं तीसरे चौक में राजा जयसिंह, महाराजा रामसिंह, सवाई प्रतापसिंह और जगतसिंह की समाधियां हैं. हालांकि महाराजा ईश्वरी सिंह का यहां अंतिम संस्कार नहीं हुआ. देवेन्द्र कुमार भगत ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि ईश्वरी सिंह ने जहर खाकर आत्महत्या की थी.
जयपुर न्यूज़ डेस्क !!!