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अशोक गहलोत का मुंबई में भाषाई सौहार्द्र पर जोर, कहा – हर भाषा और धर्म का हो सम्मान

 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को मुंबई दौरे के दौरान भाषा और धर्म के सम्मान की अपील करते हुए एकता और सौहार्द्र का संदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भाषाई मतभेदों पर झगड़ा अनावश्यक है और इससे समाज में विभाजन की भावना को बढ़ावा मिलता है।

गहलोत की यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी पढ़ाए जाने को लेकर विवाद गहराया हुआ है और इसके विरोध में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) से जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा हिंसक घटनाओं को अंजाम दिए जाने की खबरें सामने आई हैं। हाल ही में गैर-मराठी भाषी नागरिकों पर हमला करने और उनसे जबरन मराठी में बात करने का दबाव बनाए जाने के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं।

गहलोत ने क्या कहा?

मुंबई में एक प्रेस वार्ता के दौरान गहलोत ने कहा,
"भारत विविधताओं का देश है। यहां हर धर्म, हर जाति और हर भाषा की अपनी खूबसूरती है। यदि हम एक-दूसरे की भाषा और संस्कृति का सम्मान नहीं करेंगे, तो देश की एकता कमजोर होगी। भाषा को लेकर हिंसा या भेदभाव करना पूरी तरह गलत है।"

उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य में इस तरह की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं और सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे सांप्रदायिक और भाषाई सौहार्द्र को बनाए रखने में भूमिका निभाएं।

मनसे के रवैये की आलोचना

गहलोत ने सीधे तौर पर मनसे की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि
"किसी को मराठी भाषा पर गर्व होना गलत नहीं है, लेकिन गर्व जब दूसरों की भाषा या अस्मिता को अपमानित करने लगे, तो वह गर्व नहीं, अहंकार बन जाता है।"

उन्होंने यह भी कहा कि भाषा सीखना किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय होता है और उस पर जोर-जबर्दस्ती करना संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।

हिंदी विरोध के मुद्दे पर कांग्रेस का रुख स्पष्ट

गहलोत ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस किसी भी भाषा के विरोध में नहीं है, बल्कि वह सभी भाषाओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार की पक्षधर है। उन्होंने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अन्य भाषाओं की उपेक्षा की जाए

राजनीतिक संदर्भ और प्रभाव

अशोक गहलोत का यह बयान न केवल राजनीतिक दृष्टि से संतुलित है, बल्कि इससे कांग्रेस का वह पक्ष भी सामने आता है जो देश की बहुभाषीय और बहुसांस्कृतिक संरचना को महत्व देता है। महाराष्ट्र की राजनीति में जहां मनसे जैसी पार्टियां भाषाई पहचान को आक्रामक रूप में पेश कर रही हैं, वहीं गहलोत जैसे नेता संविधानिक मूल्यों की ओर ध्यान दिला रहे हैं।