अवैध खनन रोकने और राजस्व बढ़ाने के लिए अंतरराज्यीय अध्ययन समितियां गठित, जनवरी में सौंपी जाएगी रिपोर्ट
राज्य में अवैध खनन पर प्रभावी रोक लगाने और खनन क्षेत्र से होने वाले राजस्व में वृद्धि के उद्देश्य से सरकार ने अंतरराज्यीय अध्ययन समितियों का गठन किया है। ये समितियां मध्यप्रदेश, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की सर्वोत्तम खनन प्रथाओं का गहन अध्ययन करेंगी। अध्ययन के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट जनवरी माह में सरकार को सौंपी जाएगी, जिसके बाद राज्य में खनन नीति और निगरानी तंत्र को और मजबूत किया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, अवैध खनन के कारण राज्य को हर साल करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ता है। इसके साथ ही पर्यावरण को भी गंभीर क्षति पहुंचती है। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह कदम उठाया है। अंतरराज्यीय समितियों में खनन विभाग, राजस्व विभाग, पर्यावरण विशेषज्ञों और प्रशासनिक अधिकारियों को शामिल किया गया है, ताकि अध्ययन बहुआयामी और व्यावहारिक हो सके।
समितियां मध्यप्रदेश, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में लागू खनन निगरानी व्यवस्था, तकनीकी नवाचार, ई-नीलामी प्रक्रिया, रॉयल्टी संग्रह, परिवहन निगरानी और अवैध खनन पर कार्रवाई के प्रभावी मॉडल का अध्ययन करेंगी। खास तौर पर यह देखा जाएगा कि इन राज्यों ने किस तरह से तकनीक का उपयोग कर खनन गतिविधियों पर नियंत्रण पाया है और राजस्व संग्रह को बेहतर बनाया है।
अधिकारियों का कहना है कि उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में खनन से जुड़े डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम, ऑनलाइन परमिट और रियल टाइम मॉनिटरिंग जैसे उपाय काफी कारगर साबित हुए हैं। वहीं मध्यप्रदेश में खनन विभाग और स्थानीय प्रशासन के बीच बेहतर समन्वय से अवैध खनन पर अंकुश लगाने में सफलता मिली है। इन अनुभवों को राज्य की परिस्थितियों के अनुसार लागू करने की योजना बनाई जा रही है।
जनवरी में सौंपी जाने वाली रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार नई कार्ययोजना तैयार करेगी। इसमें अवैध खनन करने वालों पर सख्त कार्रवाई, जुर्माने की दरों में बढ़ोतरी, निगरानी तंत्र को मजबूत करने और पारदर्शी व्यवस्था लागू करने जैसे सुझाव शामिल हो सकते हैं। इसके साथ ही खनन क्षेत्र से जुड़े ठेकेदारों और कारोबारियों को नियमों के पालन के लिए और अधिक जिम्मेदार बनाया जाएगा।
सरकार का मानना है कि इन कदमों से न केवल अवैध खनन पर प्रभावी रोक लगेगी, बल्कि राज्य के राजस्व में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी। साथ ही पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी।