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जयपुर  के गोविंद देव जी मंदिर का वृंदावन से क्या है पौराणिक रिश्ता? वायरल फुटेज में देखे श्रीकृष्ण की मूल प्रतिमा के ऐतिहासिक सफर की कहानी

 

जयपुर के हृदयस्थल में स्थित गोविंद देव जी का मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह इतिहास, भक्ति और विरासत से जुड़ा एक अनमोल प्रतीक भी है। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बने इस मंदिर का संबंध सीधे-सीधे वृंदावन से है — वह भूमि जो श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और प्रेम कथाओं की साक्षी रही है। लेकिन सवाल यह उठता है कि वृंदावन में पूजे जाने वाले भगवान गोविंद देव जी की प्रतिमा आखिर कैसे पहुंची जयपुर? आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक और आध्यात्मिक यात्रा की पूरी कहानी।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/qio3LEGIzfI?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/qio3LEGIzfI/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="Govind Dev Ji Temple | गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर का इतिहास, वास्तुकला, मान्यता, दर्शन, पौराणिक कथा" width="695">

वृंदावन से निकली गोविंद देव जी की यात्रा

माना जाता है कि श्रीकृष्ण के समय की जो मूल मूर्तियाँ थीं, उनमें से एक श्री गोविंद देव जी की मूर्ति भी थी, जिसे खुद श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने बनवाया था। यह प्रतिमा सैकड़ों वर्षों तक वृंदावन में पूजा जाती रही। लेकिन मुगल काल के दौरान जब देश में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ी और मंदिरों को निशाना बनाया जाने लगा, तब कई मूर्तियों को वहां से हटाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।

औरंगज़ेब के समय में मूर्ति को हटाना पड़ा

इतिहासकार बताते हैं कि मुगल शासक औरंगज़ेब के समय में हिंदू मंदिरों पर हमले तेज़ हुए। वृंदावन के प्रमुख मंदिरों को तोड़ा गया और उनके देव विग्रहों को हटाने की नौबत आ गई। ऐसी ही स्थिति में, 1670 के आस-पास, गोविंद देव जी की मूल प्रतिमा को वहां से हटाकर पहले काम्यवन, फिर नंदगाँव और अंत में जयपुर लाया गया।

आमेर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय का योगदान

गोविंद देव जी की प्रतिमा को जयपुर लाने और उनकी भव्य पूजा-अर्चना की व्यवस्था करने में सबसे बड़ा नाम है आमेर (वर्तमान जयपुर) के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय का। वे स्वयं वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी थे और वृंदावन के संतों से गहरा संबंध रखते थे। उन्होंने जब जयपुर शहर की स्थापना की, तब उन्होंने गोविंद देव जी की प्रतिमा को शहर के केंद्र में विशेष रूप से बनाए गए मंदिर में स्थापित किया।

जयपुर की वास्तुकला में है वृंदावन की झलक

गोविंद देव जी का मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि यह जयपुर की धार्मिक आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर की स्थापत्य शैली, गर्भगृह की दिशा, और श्रीकृष्ण के श्रृंगार-सेवा के नियम सभी कुछ वृंदावन के मंदिरों से प्रेरित हैं। यहां तक कि मंदिर से सिटी पैलेस तक की सीधी रेखा में रखा गया निर्माण भी इस बात का संकेत है कि राजा जयसिंह द्वितीय ने मंदिर को शाही संरचना का अभिन्न हिस्सा माना।

भक्ति और प्रेम का सेतु

आज भी जब श्रद्धालु जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर में दर्शन करने आते हैं, तो उन्हें ऐसा अनुभव होता है जैसे वे वृंदावन की गलियों में श्रीकृष्ण के दर्शन कर रहे हों। आरती, भोग और झांकी की परंपराएं भी वृंदावन के नित्य सेवा विधान से जुड़ी हुई हैं। सुबह की मंगला आरती से लेकर शाम की शयन आरती तक, हर सेवा में वही प्रेम और अनुराग झलकता है जो वृंदावन की भक्ति परंपरा में देखने को मिलता है।

गोविंद देव जी मंदिर: आज भी उतना ही जीवंत

माना जाता है कि गोविंद देव जी जयपुर में साक्षात विराजमान हैं और भक्तों की हर पुकार सुनते हैं। विशेषकर जन्माष्टमी, राधा अष्टमी, और फाल्गुन के झूलन उत्सव के दौरान यह मंदिर भक्ति, रंग और रास की एक ऐसी छवि प्रस्तुत करता है जो वृंदावन के प्रेम में डूबे भक्तों को तुरंत भाव-विभोर कर देती है।