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"नए संसद भवन में गाय को लाया जाना चाहिए था"  शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का बयान चर्चा में

 

ज्योतिर्ष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती एक बार फिर अपने विवादित और सनातन-आधारित बयान को लेकर सुर्खियों में आ गए हैं। इस बार उन्होंने सेंट्रल विस्टा परिसर स्थित नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि "संसद भवन के उद्घाटन के दौरान एक गाय को भी अंदर लाया जाना चाहिए था।"

उनके इस बयान ने धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक हलकों में बहस को जन्म दे दिया है।

"गाय सनातन संस्कृति की आत्मा है"

अपने बयान में शंकराचार्य ने कहा –

"गाय हमारे लिए सिर्फ एक पशु नहीं, बल्कि संस्कृति, अर्थव्यवस्था और अध्यात्म की प्रतीक है। जब नए संसद भवन का उद्घाटन किया गया, तो पूजा-पाठ और वैदिक अनुष्ठान हुए, लेकिन सनातन धर्म की आत्मा मानी जाने वाली गाय को स्थान नहीं दिया गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।"

उन्होंने यह भी कहा कि जब मंदिर निर्माण या किसी शुभ कार्य में गोपूजन अनिवार्य होता है, तो राष्ट्र के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मंदिर – संसद भवन में भी इसका पालन होना चाहिए था।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

शंकराचार्य के इस बयान पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।

  • धार्मिक संगठनों और कुछ हिंदू संगठनों ने उनके बयान का समर्थन करते हुए कहा कि यह सनातन मूल्यों की रक्षा का प्रतीकात्मक आग्रह है।

  • वहीं विपक्षी दलों और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से जुड़े लोगों ने इस बयान को गैरजरूरी धार्मिक हस्तक्षेप और संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा से जुड़ा मामला बताया है।

यह पहला मौका नहीं

गौरतलब है कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद इससे पहले भी कई बार धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों पर बयान देकर चर्चा में रह चुके हैं। चाहे वह गंगा की अविरल धारा को लेकर उनका संघर्ष हो या राम मंदिर निर्माण से जुड़ी टिप्पणियां – वे अक्सर सामाजिक मूल्यों और धर्म के समन्वय पर अपने विचार खुलकर रखते रहे हैं।