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11/7 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामला, आरोपितों को बरी किए जाने पर पीड़ित परिवारों ने जताई नाराजगी, सरकार पर उठाए सवाल

 

2006 में हुए 11 जुलाई मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा सभी आरोपितों को बरी किए जाने के फैसले से पीड़ित परिवारों में गहरा आक्रोश और निराशा है। विस्फोट में अपने 21 वर्षीय बेटे हर्षल भालेराव को खोने वाले वसई निवासी यशवंत भालेराव ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यह न्याय नहीं है, बल्कि हमारे घावों पर नमक छिड़कने जैसा है। सरकार ने मामले की जांच ठीक से नहीं की, और इसी वजह से अपराधी छूट गए।"

न्याय के इंतजार में 18 साल
मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए इन सिलसिलेवार धमाकों में 189 लोगों की जान गई थी और 800 से अधिक घायल हुए थे। पीड़ित परिवारों ने बीते 18 वर्षों से न्याय की उम्मीद में अदालतों की चौखट पर समय बिताया, लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले ने उनकी उम्मीदों को झटका दिया है।

सरकार की जांच पर सवाल
यशवंत भालेराव ही नहीं, कई अन्य पीड़ित परिवारों ने भी सरकार और जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जांच की शुरुआत से ही इसमें लापरवाही और भ्रम की स्थिति थी, जिसके चलते सटीक आरोप तय नहीं हो सके।

फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी जाएगी चुनौती
पीड़ितों के वकीलों ने संकेत दिए हैं कि वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। उनका कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले से एक गंभीर संदेश गया है कि इतने बड़े आतंकी हमले में भी अगर कोई दोषी नहीं पाया जाता, तो आम नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी कैसे दी जाएगी?

राजनीतिक हलचल भी तेज
फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों में भी बहस छिड़ गई है। विपक्ष ने इसे सरकार की विफलता बताते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से गंभीर चूक कहा है।