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मध्य प्रदेश के बासमती को जीआई टैग की जारी कवायद पर सियासत गरम

 

मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई (ज्योलजिकल इंडीकेशन) टैग देने की जारी कवायद के बीच पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए खत से राज्य की सियासत गरम हो गई है। भाजपा ने कांग्रेस पर हमलावर रुख अपनाया है और उसे किसान विरोधी बताया है, तो कांग्रेस ने भाजपा पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया है।

मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैगिंग दिलाए जाने के प्रयास जारी हैं। इसी बीच बुधवार को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि कृषि उत्पादों को जीआई टैिंगग दिए जाने से उनको भौगोलिक पहचान मिलती है। अगर जीआई टैगिंग से छेड़छाड़ होती है तो इससे भारतीय बासमती के बाजार को नुकसान होगा। इसका सीधा लाभ पाकिस्तान को मिल सकता है। इसे मध्य प्रदेश के विरोध माना जा रहा है।

प्ांजाब के मुख्यमंत्री के पत्र को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐतराज जताया है। उन्होंने कहा है कि “मैं मध्यप्रदेश के अपने बासमती उत्पादन करने वाले किसानों की लड़ाई लड़ रहा हूं। उनके पसीने की पूरी कीमत उन्हें दिलाकर ही चैन की सांस लूंगा। जीआई टैगिंग के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर अवगत करा दिया है। मुझे विश्वास है कि प्रदेश के किसानों को न्याय अवश्य मिलेगा।”

उन्होंने कहा, “मध्यप्रदेश के बासमती को जीआई दर्जा देने के लिए रजिस्ट्रार ज्योलॉजिकल इंडीकेशन, चेन्नई ने एपिडा को आदेशित किया है। प्रदेश में बासमती की खेती परम्परागत रूप से होने के संबंध में आईआईआरआर हैदराबाद एवं अन्य विशेषज्ञ संस्थाओं द्वारा प्रतिवेदित किया गया है।”

चौहान ने भारत सरकार से अनुरोध करते हुए कहा, “मध्यप्रदेश के किसानों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएं। प्रदेश के बासमती को जीआई दर्जा प्रदान किए जाने के संबंध में सर्व-संबंधितों को निर्देशित करने का कष्ट करें, ताकि बासमती किसानों को उनका हक मिल सके।”

मुख्यमंत्री चौहान और भाजपा के आरोपों के जवाब में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ ने कहा, “भाजपा हर मामले में झूठ बोलने व झूठ फैलाने में माहिर है। मध्यप्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग मिले, मैं और मेरी सरकार सदैव इसकी पक्षधर रही है और मैं आज भी इस बात का पक्षधर हूं कि यह हमें ही मिलना चाहिए।”

कमल नाथ ने आगे कहा, “मैं सदैव प्रदेश के किसानों के साथ खड़ा हूं, उनके हितों के लिए लड़ता रहूंगा, इसमें कोई सोचने वाली बात ही नहीं है। बासमती चावल को जीआई टैग मिले, इसकी शुरुआत एपिडा ने नवम्बर 2008 में की थी। उसके बाद 10 वर्षो तक प्रदेश में भाजपा की सरकार रही। जिसने इस लड़ाई को ठीक ढंग से नहीं लड़ा। इसके कारण हम इस मामले मे पिछड़े। केंद्र व राज्य में भाजपा की सरकार के दौरान ही पांच मार्च, 2018 को जीआई रजिस्ट्रार ने मध्यप्रदेश को बासमती उत्पादक राज्य मानने से इंकार कर दिया।”

कमलनाथ का कहना है कि “प्रदेश हित की इस लड़ाई में अपनी सरकार के दौरान 10 वर्ष पिछड़ने वाले आज हमारी 15 माह की सरकार पर झूठे आरोप लगा रहे हैं, कितना हास्यास्पद है। हमारी 15 माह की सरकार में इस लड़ाई को दमदारी से लड़ा। अगस्त 2019 में इस प्रकरण में हमारी सरकार के समय हुई सुनवाई में हमने ²ढ़ता से शासन की ओर से अपना पक्ष रखा था।”

पंजाब के मुख्यमंत्री के पत्र को लेकर हमलावर हुए मुख्यमंत्री के सवालों के जवाब में कमल नाथ ने कहा, “पंजाब के मुख्यमंत्री वहां के किसानों की लड़ाई लड़ रहे हैं। मैं प्रदेश के किसानों के साथ खड़ा हूं, सदैव उनकी लड़ाई को लड़ूंगा। इसमें कांग्रेस, भाजपा वाली कोई बात नहीं है। इस हिसाब से तो केन्द्र में वर्तमान में भाजपा की सरकार है, फिर राज्य की अनदेखी क्यों हो रही है?”

भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी कांग्रेस पर हमला बोला और कहा, “किसान चाहे पंजाब के हों या मध्यप्रदेश के, उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए जी तोड़ परिश्रम किया है। पंजाब ने अगर सारे देश को खेती से समृद्घि हासिल करने का रास्ता दिखाया है, तो वह उसके किसानों के परिश्रम के बलबूते पर ही संभव हुआ है और अगर आज मध्यप्रदेश समर्थन मूल्य पर सबसे ज्यादा गेहूं खरीदी वाला राज्य बना है तो वह भी किसानों की मेहनत के बल पर हो सका है। किसान सिर्फ किसान है और उसकी मेहनत ही उसकी पहचान है। ऐसे में सिर्फ राजनीतिक नजरिए से देखकर मध्यप्रदेश और पंजाब के किसानों में भेद करना उनके परिश्रम का अपमान है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को इससे बचना चाहिए।”

शर्मा ने कहा कि “मध्यप्रदेश में बासमती चावल की खेती का पुराना इतिहास रहा है। देश की आजादी के काफी पहले से प्रदेश के कई जिलों में बासमती चावल की खेती होती रही है। अब तो मध्यप्रदेश के कई जिले चावल उत्पादक हो गए हैं, लेकिन 1940 के दशक के सिंधिया स्टेट के दस्तावेजों से भी प्रदेश के 13 जिलों में धान की खेती की पुष्टि होती है।”

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस