हिंदी में MBBS की पढ़ाई, सरकार की कोशिश नाकाम, छात्रों ने नहीं दिखाया रुझान
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षी योजना उम्मीद के अनुरूप सफल नहीं हो पाई है। तीन साल पहले बड़ी उम्मीदों और प्रचार के साथ इस योजना की शुरुआत की गई थी। सरकार ने जबलपुर स्थित झालेश्वर मेडिकल यूनिवर्सिटी (झाम) के साथ मिलकर हिंदी में MBBS पढ़ाई की नींव रखी थी और इस पहल को देशभर में एक ऐतिहासिक कदम बताया गया था।
इस योजना के तहत लगभग 10 करोड़ रुपये खर्च कर हिंदी में मेडिकल की किताबें भी छपवाई गईं। एमबीबीएस के पहले, दूसरे और तीसरे वर्ष के लिए विषयवार पुस्तकों का अनुवाद और प्रकाशन कराया गया था। इन किताबों को मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को मुफ्त उपलब्ध कराया गया था।
लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट रही। पिछले तीन शैक्षणिक सत्रों में एक भी छात्र ने अपनी परीक्षा का उत्तर हिंदी में नहीं लिखा। सभी छात्रों ने अंग्रेजी भाषा को ही प्राथमिकता दी। न केवल परीक्षा उत्तर पुस्तिकाओं में, बल्कि कक्षा शिक्षण, नोट्स और प्रस्तुति में भी छात्रों का झुकाव पूरी तरह अंग्रेजी की ओर रहा।
छात्रों और विशेषज्ञों के अनुसार, मेडिकल शब्दावली का हिंदी में अनुवाद छात्रों को कठिन और अनफ्रेंडली लगता है। वे मानते हैं कि मेडिकल क्षेत्र में देश और विदेश दोनों में करियर बनाने के लिए अंग्रेजी की समझ और उपयोग जरूरी है। यही वजह है कि छात्र हिंदी माध्यम की सुविधा होने के बावजूद अंग्रेजी से ही पढ़ाई करना ज्यादा सुरक्षित मानते हैं।
मेडिकल कॉलेजों के शिक्षक भी इसे एक बड़ी चुनौती मानते हैं। उनका कहना है कि किताबों का अनुवाद तकनीकी रूप से सटीक नहीं है और कई शब्दों की हिंदी कठिन और अप्रचलित है, जिससे पढ़ाई में भ्रम की स्थिति बनती है। इससे छात्रों को क्लास में समावेशी अनुभव नहीं मिल पाता।
हालांकि, राज्य सरकार ने अभी इस परियोजना को बंद नहीं किया है, लेकिन इसके परिणामों ने जरूर नीति निर्माताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हिंदी में चिकित्सा शिक्षा को सफल बनाना है, तो केवल किताबें छपवाना काफी नहीं होगा, बल्कि शब्दावली के सरलीकरण, अध्यापकों का प्रशिक्षण और छात्रों की मानसिक तैयारी पर भी जोर देना होगा।