इंदौर BRTS—तोड़ने की घोषणा से लेकर चुप्पी तक, सिस्टम की सुस्त चाल पर उठे सवाल
सरकारी तंत्र आम आदमी के सब्र की परीक्षा कैसे लेता है, इसका जीता-जागता उदाहरण है इंदौर का बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम)। करीब 11.45 किमी लंबा यह कॉरिडोर अब तक अस्तित्व में है या निष्क्रिय — इसे लेकर सरकार से लेकर आम नागरिक तक असमंजस में हैं।
पाँच महीने पहले जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने BRTS को तोड़ने की मंशा जाहिर की, तो पूरा सरकारी सिस्टम इसे ‘बेकार’ साबित करने में जुट गया। हाईकोर्ट से भी साढ़े चार महीने पहले अनुमति मिल चुकी है, लेकिन नतीजा अब तक शून्य है।
🏗️ घोषणा हुई, अमल नहीं
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद उम्मीद जगी थी कि BRTS कॉरिडोर को हटाकर आम लोगों को राहत दी जाएगी, लेकिन आज भी कॉरिडोर जस का तस है।
“घोषणा के साथ तस्वीरें खिंचवाई गई थीं, लेकिन अब मशीनों का नामोनिशान नहीं,” — स्थानीय नागरिकों की नाराजगी साफ झलकती है।
🚦 असमंजस की स्थिति — चलाएं या नहीं?
इससे भी ज्यादा विडंबना यह है कि साढ़े चार माह बाद भी जिम्मेदार यह तय नहीं कर पाए हैं कि:
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बीआरटीएस कॉरिडोर को आम वाहनों के लिए खोला जाए या नहीं?
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क्या इसे अस्थायी रूप से उपयोग में लाया जाए?
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या फिर तोड़ने की प्रक्रिया शुरू की जाए?
🛑 आम जनता की परेशानी
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रोजाना जाम, अतिक्रमण और रास्ता ढूंढते लोग
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बीआरटीएस के चलते आवागमन में बेवजह की जटिलता
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दुकानदारों, व्यवसायियों और छात्रों को हो रही असुविधा
🔍 विशेषज्ञों का मत
शहर नियोजन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकार ने यह तय कर ही लिया है कि बीआरटीएस अप्रासंगिक है, तो निर्णय में देरी न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि जनता के धैर्य के साथ खिलवाड़ भी है।
🏛️ राजनीतिक बयानबाज़ी के इतर ज़मीनी सच्चाई
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नेता बोलते हैं कि "काम होगा,"
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अधिकारी कहते हैं "प्रस्ताव तैयार हो रहा है,"
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लेकिन सड़क पर चलने वाला इंदौरी अब सिर्फ पूछ रहा है — "बीआरटीएस हटेगा कब?"