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रीवा के पूर्व आर्मी मैन ने दिखाया खेती का नया अंदाज, दुष्यंत कुमार की कविता को किया साकार

 

कौन कहता है कि आसमान में सुराग हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत उछालो... दुष्यंत कुमार की ये मशहूर पंक्तियां रीवा जिले के मनगवा क्षेत्र के बेलवा पैकान गांव के रहने वाले विजय बहादुर कुशवाहा ने सच साबित कर दी हैं। विजय बहादुर, जो कि 26 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं, अब अपनी नई ज़िंदगी में खेती के क्षेत्र में एक अलग मिसाल कायम कर रहे हैं।

सेना से रिटायर होने के बाद विजय बहादुर ने अपने गांव लौटकर पारंपरिक खेती के तरीकों को छोड़कर कुछ नया करने का साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने अपने दो एकड़ जमीन को छोड़ कर गेहूं और धान की खेती की बजाय आधुनिक और नवीन फार्मिंग तकनीकों को अपनाने की ठानी।

नई सोच और नया प्रयास

विजय बहादुर ने परंपरागत फसलों के बजाय अपने खेतों में विभिन्न प्रकार की उन्नत खेती की विधियां अपनाई। उन्होंने जैविक खेती, पॉलीहाउस कृषि, और मिश्रित खेती को अपनाकर अपनी खेती को नयी दिशा दी है। इससे न केवल उनकी उपज बढ़ी है, बल्कि वे अपने गांव में खेती के प्रति नई सोच भी ला रहे हैं।

किसानों के लिए प्रेरणा

उनका यह प्रयास ग्रामीण किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। विजय बहादुर नियमित रूप से गांव में बैठकों का आयोजन करते हैं और अन्य किसानों को नई खेती के तरीकों के बारे में जागरूक करते हैं। उनका मानना है कि खेती में आधुनिक तकनीकों को अपनाकर न केवल उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है, बल्कि किसानों की आय में भी सुधार हो सकता है।

सेना सेवा से खेती तक की यात्रा

सेना में 26 साल सेवा देने वाले विजय बहादुर के अनुभवों ने उन्हें अनुशासित और मेहनती बनाया। अब वे उसी समर्पण और लगन के साथ खेती को भी सफल बनाने में लगे हैं। उनका कहना है कि जमीन से जुड़ी हर चुनौती को धैर्य और मेहनत से पार किया जा सकता है।

आगे की योजना

विजय बहादुर का उद्देश्य न केवल अपनी खेती को सफल बनाना है, बल्कि पूरे क्षेत्र में किसानों के बीच नई तकनीकों का प्रचार-प्रसार करना भी है। वे चाहते हैं कि खेती को रोजगार और आर्थिक समृद्धि का जरिया बनाया जाए।

रीवा के इस पूर्व सैनिक ने अपने प्रयासों से साबित कर दिया है कि अगर निश्चय मजबूत हो तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। वे दुष्यंत कुमार की कविता की तरह, एक पत्थर को उछालकर आसमान में सुराग निकालने में कामयाब हुए हैं।