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शासकीय स्कूल में शिक्षक पिता ने बेटी के लिए बनवाई दो अलग-अलग अंकसूचियां, मामला जांच के घेरे में

 

मध्यप्रदेश के एक शासकीय स्कूल से शिक्षा व्यवस्था को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसमें एक शिक्षक पिता पर अपनी ही बेटी के नंबर सुधारने के लिए सत्र 2023-24 में सातवीं कक्षा की दो अलग-अलग अंकसूचियां जारी करवाने का गंभीर आरोप लगा है। यह मामला जिले के एक विकासखंड के सरकारी स्कूल से जुड़ा है और अब शिक्षा विभाग की जांच के घेरे में है।

दो अलग-अलग अंकसूचियां बनीं सबूत

जानकारी के अनुसार, संबंधित छात्रा एक शिक्षक की बेटी है और वह शासकीय माध्यमिक विद्यालय में कक्षा सातवीं की छात्रा थी। आरोप है कि शिक्षक पिता ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पहले जो अंकसूची तैयार करवाई थी, उसमें छात्रा के औसत अंक अपेक्षाकृत कम थे। बाद में, दूसरी अंकसूची तैयार करवाई गई, जिसमें नंबरों को बढ़ा-चढ़ाकर दर्ज किया गया था।

जब स्कूल के अन्य शिक्षकों और रिकॉर्ड जांचने वालों की नजर दोनों अंकसूचियों पर पड़ी, तो इसमें अंतर दिखाई दिया। एक ही सत्र, एक ही कक्षा और एक ही छात्रा के लिए दो अलग-अलग प्रमाणपत्रों का होना न केवल गड़बड़ी का संकेत देता है, बल्कि शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता की गंभीर कमी को भी उजागर करता है।

विभागीय जांच के निर्देश

मामले की जानकारी मिलते ही विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO) ने संज्ञान लेते हुए तत्काल जांच के आदेश दे दिए हैं। उन्होंने कहा कि, "यह एक गंभीर मामला है। यदि शिक्षक द्वारा पद का दुरुपयोग करते हुए बेटी के लिए फर्जी अंकसूचियां जारी करवाई गई हैं, तो नियमानुसार सख्त कार्रवाई की जाएगी।"

शिक्षा में नैतिकता पर सवाल

यह मामला सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं बल्कि शिक्षक की नैतिक जिम्मेदारी पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है। शिक्षक का कर्तव्य होता है छात्रों को ईमानदारी, मेहनत और मूल्य आधारित शिक्षा देना, लेकिन जब वही शिक्षक अपने निजी हित के लिए नियमों को ताक पर रख दे, तो पूरी व्यवस्था पर अविश्वास पैदा होता है।

स्कूल प्रबंधन की भूमिका पर भी सवाल

अब तक सामने आए तथ्यों से यह भी संकेत मिल रहे हैं कि स्कूल प्रबंधन ने इस पूरे मामले में शिक्षक का मौन समर्थन किया या फिर लापरवाही बरती। क्योंकि यदि बिना प्रबंधन की जानकारी के दो अंकसूचियां जारी हुईं, तो यह प्रक्रियागत खामी है, और यदि जानबूझकर अनदेखी की गई है, तो यह साजिश में भागीदारी मानी जाएगी।

क्या हो सकती है कार्रवाई?

यदि जांच में आरोप सिद्ध होते हैं, तो शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। साथ ही, फर्जी दस्तावेज जारी करने के मामले में कानूनी कार्रवाई भी संभव है।

यह मामला शिक्षा विभाग और सरकार के उस उद्देश्य को भी चुनौती देता है, जिसके तहत सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता और पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कार्रवाई करता है और शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता बहाल करने के लिए क्या कदम उठाता है।