ऑनलाइन कोर्स में लापरवाही पर उपभोक्ता फोरम का बड़ा फैसला, छात्र को मिलेगा 1.45 लाख का मुआवजा
ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म द्वारा कोर्स में बरती गई लापरवाही के खिलाफ एक छात्र की शिकायत पर उपभोक्ता फोरम ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए छात्र को राहत दी है। फोरम ने न सिर्फ पूरी फीस वापस करने का आदेश दिया, बल्कि मानसिक क्षतिपूर्ति और ब्याज समेत कुल 1.45 लाख रुपये की भरपाई करने का निर्देश भी दिया है।
मामले की शुरुआत तब हुई जब ग्वालियर निवासी एक छात्र ने एक प्रतिष्ठित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से एक तकनीकी कोर्स में दाखिला लिया। छात्र का आरोप था कि कोर्स के दौरान न तो वादे के अनुसार स्टडी मटेरियल उपलब्ध कराया गया और न ही लाइव कक्षाएं समय पर संचालित की गईं। तकनीकी खामियों, सपोर्ट की कमी और लगातार टाल-मटोल के चलते छात्र की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई। परेशान होकर छात्र ने कोर्स से अपना नाम वापस लेने और फीस लौटाने की मांग की, लेकिन कंपनी ने इसे नकार दिया।
छात्र ने इसके बाद उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई। सुनवाई के दौरान छात्र ने सभी दस्तावेज और साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिनमें ईमेल्स, रजिस्ट्रेशन डिटेल्स और चैट रिकॉर्ड्स शामिल थे। फोरम ने पाया कि कंपनी ने कोर्स को लेकर किए गए वादों को पूरा नहीं किया और यह उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन है।
फोरम ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा भी एक सेवा है, और जब उपभोक्ता सेवा की गुणवत्ता में कमी का सामना करता है, तो वह मुआवजे का हकदार होता है। आयोग ने छात्र को पूरी फीस वापसी, मानसिक क्षतिपूर्ति और विलंब से भुगतान पर ब्याज के रूप में कुल 1.45 लाख रुपये देने के आदेश दिए।
यह फैसला उन हजारों छात्रों के लिए एक मिसाल बन सकता है जो ऑनलाइन कोर्स में धोखा खाने के बाद न्याय की उम्मीद छोड़ देते हैं। यह दिखाता है कि डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में भी उपभोक्ताओं के अधिकार उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितने किसी अन्य सेवा क्षेत्र में।
छात्र ने फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि यह सिर्फ व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि सभी छात्रों के लिए एक सकारात्मक संदेश है कि वे अपने हक के लिए आवाज उठा सकते हैं।
उधर, शिक्षा विशेषज्ञों और अभिभावकों ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना चाहिए, वरना ऐसे ही कानूनी परिणाम झेलने होंगे।
फिलहाल इस मामले ने ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर एक नई बहस छेड़ दी है, जिसमें उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर कानून की सख्ती अब और स्पष्ट हो रही है।