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भोपाल के बच्चे खतरे में! 100 साल पुराने जर्जर भवन में हो रही पढ़ाई, बारिश में टपक रही छतें

 

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सैकड़ों बच्चों की जान खतरे में है, और हैरानी की बात यह है कि ये खतरा किसी प्राकृतिक आपदा से नहीं, बल्कि एक सरकारी लापरवाही से जुड़ा हुआ है। दरअसल, यहां के कई सरकारी स्कूलों में नौनिहाल 100 साल पुराने जर्जर भवनों में पढ़ाई कर रहे हैं। हालत इतनी खराब है कि बारिश के दौरान छतों से पानी टपकने लगता है और दीवारें भी कभी भी ढह सकती हैं।

बारिश में टपकती छतें, बिजली के तारों से बना खतरा
स्कूलों की हालत इतनी खराब है कि बच्चों को गीली दीवारों और छत से टपकते पानी के बीच बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। कई जगहों पर बिजली के खुले तार भी दीवारों के किनारे लटके हैं, जो बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। शिक्षकों और अभिभावकों ने कई बार शिकायतें भी की हैं, लेकिन अब तक मरम्मत या भवन निर्माण का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

झालावाड़ जैसे हादसे की आशंका, प्रशासन मौन
राजस्थान के झालावाड़ जिले में हाल ही में एक स्कूल भवन की दीवार गिरने से बच्चों की जान चली गई थी। अब भोपाल में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। यहां पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता हर दिन इस डर के साथ अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं कि कहीं कोई हादसा न हो जाए।

शिक्षा विभाग की अनदेखी
भोपाल नगर निगम और शिक्षा विभाग की मिली-जुली जिम्मेदारी होने के बावजूद अब तक जर्जर स्कूल भवनों की सूची बनाकर कार्रवाई नहीं की गई है। सरकारी रिकॉर्ड में ये भवन "उपयुक्त" बताए जाते हैं, जबकि हकीकत इसके ठीक उलट है। कुछ स्कूलों के प्राचार्य खुद कबूल कर चुके हैं कि भवनों की स्थिति बेहद खतरनाक है।

बच्चों के जीवन से खिलवाड़ कब तक?
विकास के दावों के बीच राजधानी के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों का यह हाल सरकारी व्यवस्था पर सवाल उठाता है। यह मामला केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और उनके भविष्य से जुड़ा हुआ है। सवाल उठता है कि क्या कोई बड़ा हादसा होने के बाद ही प्रशासन जागेगा?

मांग उठी – जल्द हो भवनों की मरम्मत
अभिभावकों और सामाजिक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि इन जर्जर स्कूल भवनों की जल्द से जल्द मरम्मत कराई जाए या फिर बच्चों को किसी वैकल्पिक सुरक्षित भवन में स्थानांतरित किया जाए।
अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो भोपाल भी किसी बड़े हादसे का गवाह बन सकता है।

सरकार से जवाबदेही की उम्मीद
अब यह देखना होगा कि मध्य प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन इस संवेदनशील मुद्दे पर कितनी जल्दी और कितनी गंभीरता से कार्रवाई करता है, ताकि भोपाल के मासूम नौनिहालों का भविष्य सुरक्षित रह सके।