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रांची के डोरंडा में आस्था का केंद्र बने तीन कल्पतरु वृक्ष, पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा दिव्य विश्वास

 

झारखंड की राजधानी रांची के डोरंडा क्षेत्र में स्थित तीन कल्पतरु वृक्ष इन दिनों लोगों के बीच आस्था और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरे हैं। दूर-दराज से लोग इन वृक्षों के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं और अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की कामना कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि ये कोई साधारण पेड़ नहीं, बल्कि दिव्य और पौराणिक महत्व से जुड़े हुए कल्पतरु वृक्ष हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक रत्न कल्पतरु वृक्ष को माना गया है। इसे कल्पवृक्ष और कल्पद्रुम जैसे नामों से भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि कल्पतरु वह दिव्य वृक्ष है, जो अपने पास आने वाले भक्तों की इच्छाएं पूर्ण करता है।

डोरंडा क्षेत्र में मौजूद इन तीन कल्पतरु वृक्षों को लेकर वर्षों से स्थानीय श्रद्धालुओं की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। लोगों का कहना है कि यहां सच्चे मन से प्रार्थना करने पर मनोकामनाएं पूरी होती हैं। खासतौर पर नए साल, सोमवार, सावन माह और विशेष धार्मिक अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है।

स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, ये वृक्ष कई दशकों से यहां मौजूद हैं और समय के साथ इनके प्रति लोगों की श्रद्धा और विश्वास बढ़ता गया है। पहले केवल आसपास के लोग यहां पूजा-अर्चना करते थे, लेकिन अब सोशल मीडिया और जनश्रुतियों के माध्यम से इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी है।

श्रद्धालु इन वृक्षों के पास दीप जलाते हैं, धागा बांधते हैं और भगवान से सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और पारिवारिक खुशहाली की कामना करते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इन वृक्षों के नीचे ध्यान और प्रार्थना करने से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

धार्मिक जानकारों का कहना है कि भारतीय संस्कृति में वृक्षों को देवतुल्य माना गया है। पीपल, बरगद और कल्पतरु जैसे वृक्षों को विशेष स्थान प्राप्त है। कल्पतरु को स्वर्ग का वृक्ष भी कहा जाता है, जिसका उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में मिलता है।

हालांकि, वन विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी वृक्ष को संरक्षित रखना बेहद जरूरी है। आस्था के साथ-साथ लोगों को इन वृक्षों की देखभाल और संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ सकें।

डोरंडा के ये तीन कल्पतरु वृक्ष आज केवल आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि लोगों को प्रकृति से जोड़ने का माध्यम भी बनते जा रहे हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि इन वृक्षों के सान्निध्य में आने से मन को शांति और विश्वास मिलता है।