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महाराष्ट्र में कबूतरखाना और हाथी माधुरी को लेकर चल रहे विवादों ने बढ़ाई राजनीतिक और सामाजिक हलचल

 

महाराष्ट्र में इन दिनों कबूतरखाना और हाथी के मुद्दे राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से खासा गरमाए हुए हैं। मुंबई में जैन समाज ने बुधवार को कबूतरखाने बंद करने के विरोध में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया, वहीं कोल्हापुर में नंदिनी मठ की हाथी माधुरी को जामनगर स्थित वनतारा रेस्क्यू सेंटर भेजे जाने को लेकर भी लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

मुंबई में कबूतरखाने पर विवाद:
मुंबई में 50 से अधिक कबूतर खाने के बंद होने के विरोध में जैन समाज ने दादर कबूतरखाने के पास बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया। जैन समाज का कहना है कि ये कबूतर खाने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और इनका बंद होना उनके विश्वास और धार्मिक कृत्यों के खिलाफ है। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि कबूतरों को खिलाना जैन धर्म का एक प्रमुख हिस्सा है, जो दया और करुणा का प्रतीक है।

महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में आदेश जारी किया था कि शहर में स्थित कबूतर खाने को बंद किया जाएगा, जिससे पक्षियों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताई गई थी। सरकार का कहना है कि कबूतरों की अत्यधिक संख्या शहर में स्वास्थ्य और स्वच्छता को प्रभावित कर सकती है, लेकिन जैन समाज इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन मानते हुए इसका विरोध कर रहा है।

कोल्हापुर में हाथी माधुरी का मुद्दा:
वहीं, कोल्हापुर में नंदिनी मठ की प्रसिद्ध हाथी माधुरी को जामनगर स्थित वनतारा रेस्क्यू सेंटर भेजे जाने के निर्णय को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। मठ के भक्त और स्थानीय लोग इस फैसले से नाखुश हैं और उनका कहना है कि माधुरी का मठ में रहना धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

हालांकि वनतारा रेस्क्यू सेंटर ने इसे एक रेस्क्यू ऑपरेशन करार दिया है, जहां हाथी को बेहतर इलाज और देखभाल मिलेगी, लेकिन स्थानीय लोग इसे हाथी के प्राकृतिक आवास से बाहर निकालने का एक गलत कदम मानते हैं। उनका कहना है कि हाथी माधुरी मठ के वातावरण में पली-बढ़ी है और उसे जामनगर भेजना उसके स्वाभाविक जीवन से छेड़छाड़ करना होगा।

यह दोनों विवाद इस बात को दर्शाते हैं कि महाराष्ट्र में धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर मतभेद किस तरह उभर रहे हैं। राज्य सरकार के लिए इन मुद्दों को संतुलित तरीके से हल करना चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि दोनों ही मामलों में समाज के बड़े वर्गों की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं।

महाराष्ट्र की सत्ताधारी सरकार को इन विवादों का समाधान तलाशने के लिए सभी पक्षों के विचारों को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करनी होगी, ताकि न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों का संरक्षण हो सके, बल्कि राज्य की सामाजिक और पारिस्थितिकी स्थिति भी प्रभावित न हो।