×

Raigarh ग्रामीण क्षेत्र में गूंजने लगे हैं प्रकृति पर्व कर्मा के गीत

 

छत्तिसगढ न्यूज डेस्क।। झारखण्ड में करमा को लेकर गाये जा रहे भैया हमर जियब हजार साल ये करम देव दियो दियो है कर्म गोसाई दियो आशीष आदि गीत गांव कस्बों गूंज रहे है सुबह शाम करमा का गीत सुनाई देता है। प्रमुख त्योहारों में शुमार प्रकृति पर्व करमा को लेकर देवरी प्रखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उत्साह है। शुक्रवार से शुरू हुये नहाय खाय के साथ यह करम एकादशी के अवसर पर यह पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। शहर में गणेश पूजा की धूम मची है तो ग्रामीण क्षेत्रों में करमा त्योहार शुरू हो चुका है। तीज के समाप्त होते ही नारायणपुर क्षेत्र में प्रकृति पर्व कर्मा धूमधाम से प्रारंभ हो गया। क्षेत्र के रजवारडीह, चितरपुर, पांडेयडीह, पूर्णानगर, दुलाडीह नौहथिया आदि ग्राम में भाई की लंबी आयु तथा रक्षा के लिए बहनों ने शुक्रवार की सुबह तालाब, सरोवर व नदी में स्नान कर सात प्रकार के बीजों का डलिया में रोपण कर जावा रखा। अब सात दिनों तक क्षेत्र में दिन से लेकर रात्रि तक क्षेत्रीय भाषाओं में करमा के गीत गूंजेंगे। बच्ची व महिलाएं जावा के चारों ओर घेरा बनाकर नृत्य करती हैं।

करमा झारखंड का एक प्रमुख त्योहार है। मुख्य रूप से यह त्योहार भादो माह की एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस मौके पर लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं। साथ ही बहनें अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। करमा में बहनें यहां ढोल और मांदर की थाप पर झूमती-गाती भी हैं। करमा को आदिवासी संस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है। करमा पूजा व पर्व आदिवासी समाज का प्रचलित लोक पर्व है। इस त्योहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे करमा नृत्य कहते हैं। त्योहार के अंतिम दिन श्रद्धालु उपवास के पश्चात करमवृक्ष का या उसकी शाखा को घर के आंगन में रोपित करते हैं और दूसरे दिन कुल देवी-देवता को नवान्न देकर ही उसका उपभोग शुरू करते हैं। करमा नृत्य को नई फसल आने की खुशी में लोग नाच-गाकर मनाते हैं।

करमा झारखंड की लोक-संस्कृति का पर्याय भी है। यहां के आदिवासी और गैर-आदिवासी, सभी इसे लोक मांगलिक नृत्य मानते हैं। यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परंपरा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के पहले दिन उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, इसे जावा कहा जाता है। यही जावा बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती व नाचती हैं। बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई करम वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ती हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करती हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देती हैं। मौके पर किरण, गायत्री, रूपा, ममता, पार्वती, लक्ष्मी, अंजू, संजू आदि ने पहले दिन का करमा गीत गाया तथा नृत्य किया।